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________________ २२८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे णि बं० णि तंतु० अणंतभागणं बं० । पंचणोक० सिया० तंतु० अणंतभागणं बं० । मणुस-पंचिंदि०-ओरालि-तेजा-क०[ ओरालिअंगो०- ] वण्ण०४-मणुसाणु०अगु०४-तस०४-णिमि० णि. बं० णि तंतु. संखेजदिभागणं बं०। समचदु०वजरि०-पसत्थ थिरादितिण्णियुग-सुभग सुस्सर-आदें सिया० ० तु. संखेंअदिभागणं बं०। एवं पढम-विदिय-तदिएसु। चउत्थि-पंचमि-छट्ठीए तित्थयरं वज णिरयोघो । णवरि मणुस०२ एसिं आगच्छदि तेसिं णि० उक्क० । ३५५. सत्तामाए आभिणि. उक्का. बं० चदुणा०-पचंत० णि. बं० णि. उक० । थीणगिद्धि०३-दोवेदणी०-मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्थि०-णवूस०-मणुस०-मणुसाणु०-उजो०-दोगोद० सिया० बं० उक्क० । छदसणा० बारसक०भय-दु० णि.' बं० णि तंतु० अणंतभागणं बं०। पंचणोक० सिया० तंतु० अणंतभागणं बं० । है । छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायोंका कदोचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यगति, पञ्चन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कामणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग , वर्ण चतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । समचतुरस्त्र संस्थान, वर्षभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगांत, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर और आदेयका कदाचित् बन्ध करता और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार अर्थात् सामान्य नारकियोंके समान प्रथम, द्वितीय और तृतीय पृथिवीमें जानना चाहिए। चतुर्थ, पञ्चम और षष्ठ पृथिवीमें तीर्थकर प्रकृतिको छोड़कर सामान्य नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनो विशेषता है कि मनुष्यगतिद्विक जिनके आती है, उनके नियमसे उत्कृष्ट होती है। ३५५. सातवीं पृथिवीमें आभिनिबोधिकज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध कस्ता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्त्यानगृद्धि त्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषोय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुस्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध १. ता०मा०प्रत्योः 'भयदु थिमि० णि.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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