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________________ २२६ महाबंधे पदेसबंधाहियारे भागणं बं०। मणुसाउ०' उक्क० पदे०बं० पंचणा०-छदंसणा०-बारसक०-भय-दु०मणुसग०-पंचिंदि०-ओरालि.तेजा.-क०-ओरालि. अंगो०-वण्ण०४-मणुसाणु०-अगु०४तस०४-णिमि०-पंचंत० णि० ब० णि. संखेंञ्जदिमागणं बं० । थीणगिद्धि०३-दोवेदणी०-मिच्छ०-अणंताणु०४-सत्तणोक०-छस्संठा०-छस्संघ०-दोविहा०-थिरादिछयुग०तित्थ०-दोगोद० सिया० संखेंजदिभागूणं। ३५०. तिरिक्ख०' उक्क० पदे०० पंचणा०-थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबं०४-णीचा०-पंचंत० णि बं० णि० उक्क । छदंसणा०-बारसक०-भय-दु० णि० बं० णि० अणंतभागणं बं० । दोवेदणी०-इत्थि०-णस० सिया० उक्क०। पंचणोक० सिया० अणंतभागणं बं० । णामाणं सत्थाणभंगो । एवं तिरिक्खाणु०-उज्जो०। ३५१. मणुस० उक्क० पदे०बं० पंचणा-पंचंतणि. बं० णि उक्क० । थीणगिद्धि०३-दोवेदणी०-मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्थि०-णबुंस०-[ दोगोद० ] सिया० इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यायुका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति,औदारिकशरीर, वैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, निर्माण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियससे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, सात नोकषाय, छह संस्थान, छह संहनन, दो विहायोगति, स्थिर आदि छह युगल, तीर्थङ्कर और दी गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। ३५०. तिर्यञ्चगतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका भक्त स्वस्थानसन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । ३५१. मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण और पाँच भन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। १. ताप्रती 'संखेजदिभागूणं । मणुसाउ०' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'संखेजदिमागू० । [एतचिन्हान्तर्गतः पाठः ताडपत्रीयमूलमती पुनरुक्तोस्ति ] । तिरिक्ख इति पाठः । ३ प्रा०प्रती 'गस. सिया० अणंतभागूणं बं.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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