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________________ ___२२५ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं भंगो । णवरि तित्थयरं णत्थि। एवं दोदसणा०-मिच्छ०-अणंताणुव०४-इत्थि०णवूस०-णीचा० । __ ३४८. णिद्दाए उक्क० पदेब पंचणा०-पंचदंसणा०-बारसक०-पुरिस०-भय-द ०उच्चा०-पंचंत० णि० ब० णि० उक्क० । दोवेदणी०-चदुणोक०-तित्थ० सिया० उक्क० । मणुस०-पंचिंदि० -ओरालि० -तेजा०-क०-समचदु०-ओरालि अंगो०-वजरि०-वण्ण०४मणुसाणु०-अगु०४-पसत्थ०-तस०४-सुभग-सुस्सर-आदें-णिमि० णि. ब. णि. तंन्तु० संखेजदिमागणं ब। थिराथिर-सुभासुभ-जस०-अजस० सिया. तं० तु. संखेंजदिमागणं बं । एवं पंचदंस०-बारसक०-सत्तणोक०।। ३४९. तिरिक्खाउ० उक्क० पदे० पंचणा०-णवदंस० - मिच्छ०-सोलसक०भय-दु०-तिरिक्ख०-पंचिंदि०-तिण्णिसरीर०-ओरा०अंगो०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४तस०४-णिमि०-णीचा०-पंचंत० णि० ब० णि अणु० संखेंजदिभागणं बं० । दोवेद०-सत्तणोक०-छस्संठा०-छस्संघ०-उज्जो०-दोविहा०-थिरादिछयुग० सिया० संखेंजदिसमान है । इतनी विशेषता है कि इसके तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध नहीं होता। इसी प्रकार दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नीचगोत्रकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३४८. निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, चार नोकषाय और तीर्थकरप्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यश कीर्ति और अयशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार पाँच दर्श बारह कषाय और सात नोकषायको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३४९. तिर्यश्चायुका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय जुगुप्सा, तिर्यश्चगति, पञ्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, सचतुष्क, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, सात नोकषाय, छह संस्थान, छह संहनन, उद्योत, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो १. ता०प्रतौ 'सेसाणं आमिणिभ'गो' इति पाठः । Jain Education Internati For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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