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________________ २२४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे थीणगिद्धि०३-दोवेद०-मिच्छ० अणंताणु०४-इत्थि०-णदुंस०-उजो०-तित्थ०-[दोगोद०] सिया० ब० उक्क' । छदंस०-बारसक०-भय-दु० णि० बं० तंतु० अणंतभागूणं बं० । पंचणोक० सिया० तं तु० अणंतभागणं च । दोगदि-छस्संठा०-छस्संघ०-दोआणु०दोविहा०-थिरादिछयुग० सिया० तंतु० संखेंजदिभागणं । पंचिंदि०-तिण्णिसरीर ओरालि अंगो०-वण्ण०४-अणु०४-तस०४-णिमि० णि० ब० तंतु० संखेंजदिभागणं बं० । एवं चदणाणा०-दोवेदणी०-पंचंतः ।। ३४७. णिहाणिद्दाए उक्क० पदे०० पंचणा०-दोदंस-मिच्छ०-अणंताणु०४पंचंत० णि० ब० णि० उक० । छदंसणा०-बारसक०-भय-दु० णि. 4. णि. अणंतभागणं । दोवेदणी०-इत्थि०-णवूस०-मणुस०-मणुसाणु०-उज्जो०-दोगोद० सिया० उक्क० । पंचणोक० सिया० अणंतभागणं बंधदि । सेसाणं णामाणं आभिणिकज्ञानावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगद्वित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतष्क, स्त्रीवेद, नपंसकवेद, उद्योत, तीर्थङ्कर और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पाँच नीकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो गति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पश्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार शेष चार ज्ञानावरण, दो वेदनीय और पाँच अन्तरायकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३४७. निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्पृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। नामकर्मकी शेष प्रकृतियोंका भंग आभिनिबोधिक ज्ञानावरणके 1. प्रा०प्रतौ ‘णवूस० उक०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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