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________________ H २१० महाबंधे पदेसर्वधाहियारे तं•तु० अणंतभागृणं बं० । अट्ठक०-चदुणोक'० सिया० तंतु० अणंतभागूणं ब। कोधसंज० णि० बं० दुभागृणं बं । माणसंज. सादिरेयदिवड्वभागूणं ब । मायासंज-लोभसंज० णि बं० संखेंजगुणहीणं बं० । पुरिस-जस० सिया० संखेंजगुणहीणं बं०। तिण्णिगदि-पंचजादि-दोसरीर-छस्संठा-दोअंगोवंग-छस्संघ-तिण्णिआणु०पर०-उस्सा०-उज्जो०-दोविहा०-तसादिणवयुग०-अज०-तित्थ० सिया० तंतु० संखेंजदिभागूणं ब। तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि० णि. बं. तंतु० संखेंजदिभागूणं बं० । उच्चा० सिया० संखेंजदिभागूणं बं० । ३२५. अपञ्चक्खाणकोध० उक्क० पदे०७० पंचणा०-चदुदंस०-पंचिंदि०-तेजा०क०-वण्ण०४ अगु०४-तस०४-णिमि०-उच्चा०-पंचंत० णि० बं० संखेंजदिभागूणं बं० । णिदा-पयला-तिण्णिक०-भय-दु० णि० बं० णि. उक्क० । सादा०-मणुस०-ओरालि० ओरालि०अंगो०-मणुसाणु०-थिराथिर-सुभासुभ-अजस० सिया० संखेंजदिभागणं बं० । जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे अनन्तभाग. हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। आठ कषाय और चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। क्रोध संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मान संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलन और लोभसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेद और यशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तीन गति, पाँच जाति, दो शरीर, छह संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस आदि नौ युगल, अयशःकीर्ति और तीर्थङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माण का नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। उच्चगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है जो नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। ३२५. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलधुचतुष्क, त्रसचतुष्क, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा, प्रचला, तीन कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। सातावेदनीय, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ और अयशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता , आ० प्रतौ 'बं० । चदुणोक०' इति पाठः । THHTHHTHHTHE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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