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________________ २०८ महाबंधे पदे सबंधाहिया रे वेउव्वियछ० आदाव०-णीचा० सिया० उक्क० । कोधसंज० णि० बं० णि० अणु० दुभागणं । माणसंज० सादिरेयदिवडभागूणं० | मायसंज० लोभसंज० णि०चं० णि० अणु संखेज गुणहीणं० । पुरिस० जस० सिया० यदि बं० संखैअगुणहीणं ० । इस्सरदि- अरदि- सोग० सिया० णि० यदि बं० अणु० अनंतभागूणं० । दोगदि-पंचजादिओरालि० छस्संठा० - ओरालि० अंगो० - छस्संघ० - दोआणु० पर ० - उस्सा ० उ जो० - दोविहा०तसादिणवयुग ० -अज० सिया० तं तु ० संखेजदिभागूणं । तेजा० क० वण्ण ० ४- अगु० - उप० - णिमि० णि० चं० णि० तं तु ० संखेजभागूणं । एवं पयलापयला थीणगिद्धि०मिच्छ' ० - अणंताणुवं ०४ । ३२३. णिद्दाए उक्क० पदे०चं० पंचणाणा' ० चदुदंसणा० - पंचिंदि ० -तेजा० क०वण ०४ - [अ०४ ] तस०४ - णिमि० उच्चा० - पंचंत० णि० बं० णि० अणु० संखेंज दिभागूणं० । पयला-भय-दु० णि० बं० णि० [ उक्क० ] | सादा० मणुस ०. -ओरालि० 1 करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है | असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद, वैक्रियिकषटक, आतप और नीचगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । क्रोधसंज्वलनका नियम से बन्ध करता है जो इसका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । मानसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इसका नियमसे साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । मायसंज्वलन और लोभसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातगुणा हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पुरुषवेद और यशः कीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातगुणा द्दीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । हास्य, रति, अरति और शोकका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियम से अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । दो गति, पाँच जाति, भौदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस आदि नौ युगल और अयशः कीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धककी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३२३. निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क त्रसचतुष्क, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातवाँ भाग हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । प्रचला, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । सातावेदनीय मनुष्यगति, औदारिकशरीर, १. श्रा. प्रतौ ' थीणगिद्धि ३ मिच्छ०' इति पाठः । २. आ.प्रतौ 'चदुणाणा०' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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