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________________ महाबन्ध 66666 ११३-१३४ १३४ १३४ १३४-१५४ १५४-१७७ १५४-१७७ १७८ ६० ८०-८२ १७८ १७८-१९० १६०-२०७ س पदनिक्षेप ७९-८२ उत्कृष्ट स्वामित्व पदनिक्षेपके तीन भेद जघन्य स्वामित्व समुत्कीर्तना कालप्ररूपणा समुत्कीर्तनाके दो भेद कालके दो भेद उत्कृष्ट समुत्कीर्तना उस्कृष्ट काल (श्रुटित) जघन्य समुत्कीर्तना अन्तरप्ररूपणा स्वामित्व ८०-८२ जघन्य अन्तर स्वामित्वके दो भेद सनिकर्ष प्ररूपणा उत्कृष्ट स्वामित्व (श्रुटित) | सन्निकर्षके दो भेद वृद्धिबन्ध ८२-८३ स्वस्थान सन्निकर्षके दो भेद अल्पबहुत्व (श्रुटित) ८२-८३ उत्कृष्ट स्वस्थान सन्निकर्ष अध्यवसानसमुदाहार जघन्य स्वस्थान सनिकर्ष अध्यवसानसमुदाहारके दो भेद ८३ परस्थान सनिकर्षके दो भेद प्रमाणानुगम ___८३ उत्कृष्ट परस्थान सन्निकर्ष अल्पबहुत्वानुगम ८३ जघन्य परस्थान सन्निकर्ष जीवसमुदाहार ८४-८७ भङ्गविचयप्ररूपणा जीवप्रमाणानुगम ८४ भङ्गविचयके दो भेद अल्पबहुत्वानुगम ८४-८७ उत्कृष्ट भङ्गविचय उत्तरप्रकृतिप्रदेशबन्ध ८७-३६९ जघन्य भङ्गविचय भागाभागसमदाहार ८७-८१ भागाभागप्ररूपणा अर्थपद भागाभागके दो भेद २४ अनुयोगद्वारोंकी सूचना उत्कृष्ट भागाभाग स्थानप्ररूपणा जघन्य भागाभाग सर्व-नोसर्व प्रदेशबन्ध आदिप्ररूपणा ६०-६१ | परिमाणप्ररूपणा साद्यादिप्रदेशबन्धप्ररूपणा परिमाणके दो भेद स्वामित्वप्ररूपणा ६२-१३४ उत्कृष्ट परिमाण स्वामित्वके दो भेद जघन्य परिमाण २०७-३०६ ३०७-३५० ३५०-३५३ ३५० ३५०-३५२ ३५२-३५३ ३५४-३५६ ३५४ ३५४-३५५ ३५५-३५६ ३५६-३६६ ३५६ ३५६-३६२ ३६२-३६६ ८६ १० १, जघन्य स्वामित्व और अल्पबहुत्व तथा वृद्धिबन्धसम्बन्धी अल्पबहत्वके कुछ अंशको छोड़कर शेष अनुयोगद्वार भी त्रुटित । २. जघन्य काल, उत्कृष्ट अन्तर व जघन्य अन्तर का प्रारम्भिक अंश भी त्रुटित । ३. मध्यमें, बहुत अंश त्रुटित, देखो पृ० १८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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