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________________ सिरि-भगवंतभूदबलिभडारयपणीदो महाबंधो चउत्थो पदेसबंधाहियारो णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ १. यो सो पदेसबंधो सो दुविहो—मूलपगदिपदेसबंधो चेव उत्तरपगदिपदेसबंधो चेव । १ मूलपयडिपदेसबंधो २. एत्तो मूलपगदिपदेसबंधे पुव्वं गमणीयो भागाभागसमुदाहारो। अट्ठविधबंधगस्स आउगभागो' थोवो । णामा-गोदेसु भागो विसेसाधियो । णाणावरण-दसणावरण-अंतराइगाणं भागो विसेसाधियो । मोहणीयभागो विसेसाधियो। वेदणीयभागो विसेसाधियो । केण कारणेण आउगमागो थोवो ? अट्ठसु कम्मपगदीसु आउगे हिदिबंधो थोवो । एदेण कारणेण आउगभागोथोवो । सेसाणं वेदणीयवजाणं कम्माणं यस्स दीहा हिदी तस्स भागो बहुगो । वेदणीयस्स पुण अण्णं कारणं । यदि वेदणीयं ण भवे तदो अरिहन्तोंको नमस्कार हो, सिद्धोंको नमस्कार हो, आचार्यो को नमस्कार हो, उपाध्यायोंको नमस्कार हो और लोकमें सर्व साधुओंको नमस्कार हो । १. प्रदेशबन्ध दो प्रकारका है-मूलप्रकृतिप्रदेशबन्ध और उत्तरप्रकृतिप्रदेशबन्ध । १ मूलप्रकृतिप्रदेशवन्ध । २. यहाँसे मूलप्रकृतिप्रदेशबन्धमें भागाभागसमुदाहारका सर्व प्रथम विचार करते हैं। वह इस प्रकार है-आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाले जीवके आयुकर्मका भाग सबसे स्तोक है। इससे नाम और गोत्रकर्म का भाग विशेष अधिक है। इससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण अ अन्तराय कर्म का भाग विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका भाग विशेष अधिक है और इससे वेदनीय कर्मका भाग विशेष अधिक है। शंका-आयुकर्मको स्तोक भाग क्यों मिलता है ? समाधान—क्योंकि आठ कर्मो में आयुकर्मका स्थितिबन्ध स्तोक है, इससे आयुकर्मको स्तोक भाग मिलता है। वेदनीयके सिवा शेष कर्मों में जिसकी स्थिति अधिक है उसको बहुत भाग मिलता है। परन्तु वेदनीयको अधिक भाग मिलनेका अन्य कारण है । यदि वेदनीय कर्म न हो तो सब कर्म १. ता० प्रतौ आउगभावो (गो) इति पाठः । २. ता०प्रतौ आउगभावो (गो) आ० प्रती भाउगभावो इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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