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________________ १२६ महाबंधे पदेसबंधाहियारे घोल० अट्टविध० ज०जो० पढमस०सरीरपज । एवं हस्स-रदि० । अरदि-सोग० ज० प० क. १ अण्ण० पढमस०सरीरपज्ज० ज०जो० सत्तविध० । देवगदिदंडओ ज० ५० क० ? अण्ण० पढमस०सरीरपज० एगुणतीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो०। एवं अथिर-असुभ-अजस० । णवरि सत्तविध० ज०जो० । एवं आहारमि० । २११. कम्मइ० पंचणा०-णवदंसदंडओ सुहुमणि० ज०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ तस्सेव तीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । एवं सव्वदंडगं । देवगदि०४ ज० प० क. ? अण्ण० मणुस० असंज० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० ज०जो । तित्थ. ज० प० क० १ अण्ण० देव० णेरइ० तीसदि० सह सत्तविध० ज०जो०।। २१२. इत्थिवेदेसु पंचणा०दंडओ ज० प० क० ? अण्ण० असण्णि० पढमस० जजो० । आहारदुग-तित्थ० मणुसि भंगो । सेसाणं जोणिणिभंगो । एवं पुरिसेसु । गवरि देवगदि०४ ज० प० क० ? अण्ण० मणुस० पढमसमयतब्भव० असंज० एगुणतीसदि० योगसे युक्त और प्रथमसमयवर्ती शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ अन्यतर घोलमान जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार हास्य और रतिका जघन्य स्वामित्व जानना चाहिए । अरति और शोकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ, जघन्य योगसे युक्त और सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला अन्यतर जीव उक्त दो प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगतिदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर जीव उक्त दण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्तिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामित्व जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त जीव इन प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें जानना चाहिए। २११. कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण और नौ दर्शनावरण दण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सूक्ष्म निगोदिया जीव है । तिर्यश्चगतिदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सूक्ष्म निगोदिया जीव है। इसी प्रकार सब दण्डकोंका जघन्य स्वामित्व जानना चाहिए । देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्करप्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर देव और नारकी तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। २१२. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंज्ञी जीव उक्त दण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग तियश्चयोनिनी जीवोंके समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंमें ज चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, असंयतसम्यग्दृष्टि, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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