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________________ उत्तरपगदिपदे बंधे सामित्तं १२७ सह सत्तवि० ज०जो० । तित्थ० ज० प० क० ? अण्ण० देव० पढमसमय० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । णवुंसगेसु ओधं । णवरि वेउव्वियछक्कं जोणिणिभंगो । तित्थ० ० पढम० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । अवगद० सत्तण्णं० ज० प० क० १ अण्ण० बोल० सत्तविध० ज०जो० । णवरि संजलणाणं चदुविधबंधगस्स ति भाणिदव्वं । कोधादि ०४ ओघं । रह ० I २१३. मदि० - सुद० सव्वाणं ओघं । णवरि वेडव्वियछक्कं जोणिणिभंगो | एवं अब्भव० - मिच्छा० । विभंगे' पंचणा० दंडओ ज० चदुग० घोलमा० अट्ठविध० ज०जो० । दोआउ० जह० दुगदिय० घोलमाण० अट्ठविध० ज०जो० | दोआउ० चदुगदिय० घोलमाण० अट्ठविध० ज०जो० । वेडव्वियछ० ज० तिरि० मणु० घोल • अट्ठावीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ ज० प० क० १ चदुग० घोल० तीसदि० सह अडविध० ज०जो० । कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मको तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर देव तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । नपुंसकों में ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकषट्कका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्य योनिनी जीवोंके समान है । तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्घका स्वामी प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर नारकी है। अपगतवेदी जीवोंमें सात प्रकारके कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर घोलमान जीव उक्त कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । इतनी विशेषता है कि संज्वलनोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी मोहनीयके चार प्रकारका बन्ध करनेवाला जीव है, ऐसा कहना चाहिए । क्रोधादि चार कषायवाले जीवों में ओघके समान भङ्ग है । ज्ञाना २१३. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकषट्कका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियोंके समान है। इसी प्रकार अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए। विभङ्गज्ञानी जीवोंमें पाँच वरणदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर चार गतिका घोलमान जीव है । दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे - युक्त अन्यतर दो गतिका घोलमान जीव है। शेष दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका घोलमान जीव है । वैक्रियिकषट्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मको अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान तिर्यन और मनुष्य है । तिर्यञ्चगतिदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियों के साथ आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका घोलमान जीव है । मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके जघन्य प्रदेशबन्ध का १. ता० भा० प्रत्योः मिच्छा० असणि० । विभंगे इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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