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________________ १२२ महापंधे पदेसबंधाहियारे मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-णीचा. ज. प. क.? अण्ण० चद्गदि० मिच्छा. घोल० अढविध० ज०जो । णिरयाउ० ज० प० क. ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० घोलमा० अहविध० ज०जो० । तिरिक्खाउ० ज० प० क. ? अण्ण चदुग० मिच्छा० अट्ठविध० ज०जो० । मणुसाउ० ज० प० क० १ अण्ण० चदुग० सम्मा० मिच्छा० अहविध० ज०जो० । देवाउ० ज० प० क० १ अण्ण० दुगदियस्स सम्मा० मिच्छा० घोल. अट्टविध० ज०जो०। णिरयगदिदुगं ज० प० क.? अण्ण दुगदि० घोल० अठ्ठावीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । तिरिक्ख०-पंचसंठा०पंचसंघ०-तिरिक्खाणु०-उजो०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-अणादें ज०प० क० १ अण्ण० चद्गदि० घोल० तीसदि० सह अविध० ज०जो० । मणुसगदिदुग०-तित्थ० ज० ५० क० १ अण्ण० देव० रह० सम्मा० तीसदि० सह अहविध० ज०जो० । देवगदिदुर्ग ज० प० क० १ अण्ण० मणुसस्स सम्मा० एगुणतीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । एइंदि०-आदाव-थाव० ज० प० क० १ अण्ण० तिगदि० छब्बीसदि० सह अट्टविध० वरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय और नीचगोत्रके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका मिध्यादृष्टि घोलमान जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नरकायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य मिथ्यादृष्टि घोलमान जीव उक्त प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका मिथ्यादृष्टि जीव तियश्चायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि घोलमान जीव देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नरकगतिद्विकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका घोलमान जीव उक्त दो प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका घोलमान जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यगतिद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगतिद्विकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि मनुष्य देवगतिद्विकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। एकेन्द्रियजाति, आतप और स्थावरके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियों के साथ आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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