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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं १२३ ज०जो० । तिष्णिजादि० ज० प० क० ? अण्ण० दुर्गादि० तीसदि० सह अद्वविध० ज०जो० | पंचिं०-ओरा०-समचदु० - ओरा० अंगो० - वञ्जरि ० - चण्ण०४ - अगु०४ - पसत्थ ०तस ०४ - थिरादितिष्णियु० - सुभग' -सुस्सर - आदें० - णिमि० ज० प० क० १ अण्ण० चदुग० सम्मा० मिच्छा० तीसदि० सह अडविध० घोल० ज०जो० । वेउव्वि०आहार०-तेजा० क े ० - दोअंगो० ज० प० क० १ अण्ण० अप्पमत्त ० ऍक्कत्तीस दि० सह अवि० घोल ० ज०जो० । सुहुम-अपज्ञ्ज० - साधार० ज० प० क० १ अण्ण० दुर्गादि० पणवीस दि० सह अडविध० ज०जो० । O २०७. वचिजो० - असच्चमोस० पंचणा० णवदंस० - दोवेद० - मिच्छ० - सोलसक० णवणोक० - दोगो०- पंचत० ज० प० क० ? अण्ण० बेइंदि० अट्ठविध० घोल० ज०जो० । साणं दंडगाणं णाणावरणभंगो। णवर वेडव्वियछक्क जोणिणि० भंगो । दोआउ०आहारदुगं घं । तित्थ० ज० प० क० ? अण्ण० देव० णेरइ० तीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीन जातिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, समचतुरस्र संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योग से युक्त अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर और दो आङ्गोपाङ्गके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी इकतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योग से युक्त अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । २०७. वचनयोगी और असत्यमृषावचनयोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योगसे युक्त अन्यतर द्वीन्द्रिय जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। शेष दण्डकोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकषट्कका भङ्ग योनिनी जीवों के समान है। आयुचतुष्क और आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है । तीर्थकर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । १. ता०प्रतौ तिष्णियु० सुभग-सुभग० इति पाठः । २. ता०प्रतौ आहार० २ तेजाक०, आ०प्रतौ श्राहारदुगं तेजाक० इति पाठः । ३. आ०प्रतौ जोणिणिभंगो । आउ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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