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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं १२१ छदंस०-दोवेद०-[ बारसक०-सत्तणोक०-] उच्चा०-पंचंत० ज० प० क० ? अण्ण० पढम० ज०जो० । आउ० ज० प० क० १ अण्ण. घोलमाण. अहविध० ज०जो०। मणुसगदिदंडओ आणदभंगो। २०५. सव्वबादराणं सव्वाणं ओघं । णवरि अप्पप्पणो जादी माणिदव्वं । सव्वपजत्तगाणं दोआउ० घोलमाण. अहविध० जजो०। एवं विगलिंदियाणं । पंचिंदिय-पंचिंदियपजत्त० ओघं । णवरि असण्णि त्ति भाणिदव्वं । पजते आउ० पंचि०तिरि०पजत्तभंगो । तस० ओघं । णवरि बेइंदियस्स ति भाणिदव्वं । एवं पजत्तयस्स । दोआउ० असण्णि. घोलमाण० ज०जो० । दोआउ० बेईदि. घोल । अपजत्तगस्स अपजत्तभंगो। णवरि बेइंदि० पढम० ज०जो० । दोआउ० अपज. बेइंदि० भाणिदव्वं । २०६. पंचमण-तिण्णिवचि० पंचणा० सादासाद०-उच्चा०-पंचंत० ज० प० क. ? अण्ण० चदुग० सम्मा० मिच्छा० घोलमा० अट्ठविध० ज०जो०। णवदंस० लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, दो वेदनीय, बारह कपाय, नौ नोकषाय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर जीव स्वामी है। आयुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान जीव आयुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यगतिदण्डकका भङ्ग आनत कल्पके समान है। २०५. सब बादरोंमें सब प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी जाति कहनी चाहिये। सब पर्यातकोंमें दो आयओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान जीव है। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों में जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि इनमें असंज्ञी जीव जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। पर्याप्तकोंमें आयुकर्मका भङ्ग पंचेन्द्रिय तियश्च पर्याप्तकोंके समान है। त्रसोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि इनमें जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी द्वीन्द्रिय जीव है ऐसा कहना चाहिए। इसी प्रकार त्रस पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। मात्र दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोलमान जघन्य योगवाला असंज्ञी जीव है। तथा अन्य दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोलमान द्वीन्द्रिय जीव है। इनके अपर्याप्तकों में अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे यक्त द्वीन्द्रिय जीव जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो आयओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवको कहना चाहिए। २०६. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्च गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि घोलमान जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नौ दर्शना १. ता आ०प्रत्योः पज्जत्तो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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