SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० महाबंधे पदेसबंधाहियारे सत्तविध० ज०जो० । मणुस०२-तित्थ० ज० प० क० ? अण्ण० सम्मादि० पढम० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । [ एइंदियदंडओ० जोदिसिभंगो ।] पंचिं०तिण्णिसरीर-समचदु०-ओरा अंगो०-बजरिस०-वण्ण०४-अगु०४-पसत्थ-तस०४थिरादितिण्णियु०-सुभग-सुस्सर-आदे-णिमि० ज० ५० क० १ अण्ण० सम्मा० मिच्छा० पढम० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । सणकुमार याव सहस्सार त्ति एवं चेव । णवरि थावरतिगं वज । २०४. आणद याव उवरिमगेवजा त्ति सहस्सारभंगो । णवरि तिरिक्खाउ०तिरिक्खग०-तिरिक्खाणु०-उज्जो० वज्ज । मंणुस-पंचिं०तिण्णिसरीर-समच०-ओरा०अंगो०-वजरि०-चण्ण०४-मणुसाणु०--अगु०४-पसत्थ०-तस०४-थिरादितिण्णियु०सुभग-सुस्सर-आदे-णिमि०-तित्थ० ज० प० क.? अण्ण० सम्मादि० पढम० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । पंचसंठाणदंडओ ज० प० क० ? अण्ण० मिच्छा० पढमस० एगुणतीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । अणुदिस याव सवट्ट सिद्धि पंचणा०उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । मनुष्यगतिद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी हे । एकेन्द्रियजातिदण्डकका भङ्ग ज्योतिष देवोंके समान है । पञ्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि स्थावरत्रिकको छोड़कर जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए। २०४. आनतसे लेकर उपरिम प्रैवेयकतकके देवोंमें सहस्रार कल्पके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चोयु, तियश्चगति, तियश्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतको छोड़कर जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए । मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क,मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थङ्करके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। पाँच संस्थानदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका खामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भक्स्थ नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। अनुदिशसे १. ता०प्रतौ तिण्णिसरी० समऊ. अोरा०अंगो०, श्रा०प्रतौ तिष्णिसरीर सुहमा ओरा अंगो. इति पाठः । २. भा०प्रतौ तिण्णिसरीर ओरा० अंगो० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy