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आकर
उत्तरपगदिपदे बंधे सामित्तं
अचक्खु ० - भवसि ० - आहार० ओघं ।
पढमस०आहार ०
२००. पंचिं० तिरि००-पञ्जत्ता० ओघं । णवरि असण्णि० पढम०आहार० पढम०तब्भव० ज०जी० | दोआउ० घोलमाण० अट्ठविध० ज०जो० । तिरिक्ख ० - मणुसाउ० ज० प० क० १ अण्ण० असण्णिअपज० खुद्दाभ० तदियतिभागस्स पढमसमय बंधयस्स ज० प० वट्टमा० । देवगदि०४ ज० प० क० ? अण्ण० असंज० सम्मादि० पढम० तभव० अट्ठावीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । पजत्तेसु चदुण्णं आउ० ज० प० क० १ अण्ण० असण्णि० घोलमाणस्स अवि० ज०जो० | पंचिदियतिरिक्खजोणिणीसु तं चेव । णवरि वेड व्वियछ० ज० प० क० १ अण्ण० असण्णि० घोडमा० अट्ठावीसदि० सह अडविध० ज०जो० । पंचिं० तिरि० अपज्ज० ओघं । णवरि असण्णिपंचिंदियस त्ति भाणिदव्वं । एवं सव्वअपजत्तया । णवरि थावर० अप्पप्पणो जादीसु बादरणिगोदस्स ति पढमस०तब्भव • जहण्णजोगिस्स त्ति भाणिदव्वं ।
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२०१. मणुसेसु छण्णं ज० प० क० १ अण्ण० असण्णिपच्छागदस्स पढमस०अदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है ।
२०० पचेन्द्रिय तिर्यन और उनके पर्याप्तकों में ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंज्ञी जीव जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान जीव है । तिर्यवायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? क्षुल्लक भवग्रहणके तृतीय त्रिभाग के प्रथम समय में बन्ध करनेवाला और जघन्य प्रदेशबन्ध में अवस्थित अन्यतर असंज्ञी अपर्याप्त जीव उक्त दो आयओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी अन्यतर अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से यक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । मात्र पर्याप्तकों में चार आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर असंज्ञी घोलमान तिर्यञ्च उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । पद्रिय तिर्यश्च योनिनी जीवोंमें वही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिक छहके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियों के साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर असंज्ञी घोलमान जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्व अपर्याप्तकों में ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें असंज्ञी पचेन्द्रिय जीवके जघन्य स्वमित्व कहना चाहिए । इसी प्रकार सब अपर्याप्तकों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्थावरोंमें अपनी-अपनी जातिमें तथा बादर निगोद में प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाले जीवके जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए ।
२०१. मनुष्यों में छह कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? असंज्ञियोंमेंसे उत्पन्न हुआ, प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और १. ता०प्रतौ घोडमाणस्स इति पाठः । २. आ०प्रतौ अण्ण० अट्ठावीसदि ० इति पाठः ।
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