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________________ ११८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे आहार० पढमस तब्भव० ज०जो० । णिरयाउ ० ज० प० क० ? अण्ण० मिच्छा० घोलमाण० अहवि० ज०जो० । तिरिक्ख०-मणुसाउ० ज० प० क० ? अण्ण. अपज. खुद्दाम० तदियतिभाग० पढमसमयआउगबंध० ज०जो० । देवाउ० ज० प० क.? अण्ण० मिच्छा० सम्मा० घोलमा० अविध जजो०। णिरयग०-णिरयाणु० ओघ । असण्णि त्ति [ण ] भाणिदव्वं । तिरिक्खगदिदंडओ मणुसगदिदंडओ एइंदियदंडओ सुहुमदंडओ ओघं । णवरि सव्वाणं असण्णिपच्छागदस्स त्ति भाणिदव्वं । देवगदि०४-तित्थ० ज० प० क० १ अण्ण० सम्मादि० पढम आहार० पढम०तब्भव० एगुणतीसदि० सह० सत्तविध० जजो० । आहार०२ ओघं । एवं पज्जत्तगाणं पि । णवरि तिरिक्ख०-मणुसाउ० ज० प० क० ? अण्ण० मिच्छा० घोल० ज०जो० । देवाउ० सम्मादि० मिच्छादि० घोल० । मणुसिणीसु एवं चेव । णवरि देवगदि०४-आहारदुग-तित्थ० ज० प० क.? अण्ण. अप्पमत्त० ऍक्कत्तीसदि०२ जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य उक्त कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नरकायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्या दृष्टि घोलमान मनुष्य नरकायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? क्षुल्लकभवग्रहणके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें आयुकर्मका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर अपर्याप्त मनुष्य उक्त दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि घोलमान मनुष्य देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीका भङ्ग ओघके समान है । मात्र असंज्ञी ऐसा नहीं कहना चाहिए । तिर्यश्चगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक, एकेन्द्रियजातिदण्डक और सूक्ष्मदण्डकका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इन सबका जघन्य स्वामित्व असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुए मनुष्यके कहना चाहिए। देवगतिचतुष्क और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है। प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी उनतीस प्रवृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि घोलमान जघन्य योगवाला जीव उक्त दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वाम देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि घोलमान जीव है। मनुष्यिनियोंमें इसी प्रकार भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि देवगतिचतुष्क, आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? इकतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव १. ता०आ प्रत्योः मिच्छा० सोलस अट्टवि० इति पाठः । २. ता आ०प्रत्योः अण्ण भपजत्त. एबत्तीसदि० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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