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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं ११५ सह अडविध ० पढमस० तब्भव ० छब्बीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । आहार०२ ज० प० क० १ अण्ण० अप्पमत्त० ऍकत्तीस दि० घोडमाण० ज०जो० । सुहुम ०-अपज्ज० - साधार० ज० प० क० ? अण्ण० सुहुम० अपज० पढमस ० तब्भव ० पणवीसदि० ६० सह सत्तवि० ज०जो० । तित्थ० ज० प० क० १ अण्ण० देव० णेरह ० पढमस० तब्भव० तीस दि० सह सत्तविध० ज०जो० ' । १९८. रइएस पंचणा० णवदंसणा० दोवेदणी० - मिच्छ० सोलसकसा०-णवणोक ०दोगोद ० - पंचंत० ज० प० क० १ अण्ण० असण्णिपच्छागदस्स पढमस० तब्भव ० जह० जो० । तिरिक्खाउ० ज० प० क० ? अण्ण० घोलमाण० अट्ठविध० ज०जो० । मणुसाउ० ज० प० क० १ अण्ण० मिच्छा० सम्मा० अडविध० घोलमाण० ज०जो० । तिरिक्ख०-पंचिं०-तिष्णिसरीर- छस्संठा०-ओरा० अंगो० छस्संघ० वण्ण०४ - तिरिक्खाणु०अगु०४- उजो० दोविहा० - तस४ - थिरादिछयुग ०२ - णिमि० ज० प० क० ? अण्ण० असण्णिपच्छा० पढमस०आहार • पढम० तब्भव० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । छब्बीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर सूक्ष्म निगोद जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आहारकद्विकके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? नामकर्मको इकतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योगसे युक्त अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त दो प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशत्रन्धका स्वामी है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर सूक्ष्म अपर्याप्त साधारण जीव उक्त तीन प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्करप्रकृतिके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर देव और नारकी तीर्थङ्कर प्रकृति के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । १९८. नारकियोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य योगवाला और असंज्ञियोंमें से आकर उत्पन्न हुआ प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । तिर्यवायुके जघन्य प्रदेराबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान जीव तिर्यञ्चायु के जघन्य प्रदेशबन्ध स्वामी है । मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और घोलमान योग से युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी है । तिर्यञ्चगति, पञ्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर, छह संस्थान, ओदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, उद्योत, दो विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह युगल और निर्माणके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुआ प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस १. आ०प्रतौ सत्तविध० उ०जो० इति पाठः । २ आ०प्रतौ तस थिरादिछयुग इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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