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________________ ११४ महाबंध पदेसबंधाहियारे पढमसम पदे बंधे वट्टमाणस्स । णिरय देवाऊणं ज० प० बं० क० १ अण्ण० असण्णि० पंचिं० घोडमास अधिवं ० जह०जो० ज० प० बं० वट्ट० । तिरिक्खाउ ० - मणुसाउ० ज० प० क० १ सुहुमणिगोदजीवअपज • खुद्दाभवग्गहणत दियतिभागस्स आउगबंधमाणस्स जह० जो० । णिरयग० णिरयाणु० ज० प० क० ? अण्ण० असण्णि० पंचिं० घोडमाण० अट्ठावीसदि० सह अट्ठविध * ० ज०जो० । तिरिक्ख ० चदुजादिओरा०-तेजा०- क ०-छस्संठा० - ओरा० अंगो०-छस्संघ० - वण्ण०४ - तिरिक्खाणु ०-अगु०४उजव- दो विहायगदि-तस०४ - थिरादिछयुग ० - णिमि० ज० प० क० १ अण्ण० सुहुमणिगो० अपज० पढमसमयआहारगस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स तीसदिणामाए सह सत्तविध० ज०जो० । मणुसग०- मणुसाणु० ज० प० क० ? अण्ण० सुहुमणि० अपज० गढमस० तब्भवत्थ एगुणतीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० | देवग०-वेउ ० - वेड ० अंगो०देवाणु० ज० प० क० ? अण्ण० मणुस० असंज० पढमस० तब्भव० एगुणती सदि० सह सत्तविध० ज०जो० । एइंदि० - आदाव थावर० ज० प० क० ? अण्ण० सुहुमणि० सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी है । नरकायु और देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला, जघन्य योगसे युक्त और जघन्य प्रदेशबन्ध में अवस्थित अन्यतर असंज्ञी पचेन्द्रिय घोलमान जीव उक्त दो आयुओंके जघन्य प्रदेशवन्धका स्वामी है । तिर्यवायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? क्षुल्लकभवग्रहणके तृतीय भागके पहले समय में आयु कर्मका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव उक्त दो आयुओं के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियों के साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय घोलमान जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । तिर्यञ्चगति, चार जाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, उद्योत, दो विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह युगल और निर्माणके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मको तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कमका बन्ध करनेवाला, जघन्य योग से युक्त, प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृत्तियों के साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर अङ्गोपाङ्ग और देव त्यानुपूर्वीके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । एकेन्द्रियजाति आतप और स्थावरके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी १. श्र०प्रतौ तदियभागस्स तदियसमए इति पाठः । Jain Education International २. श्रा० प्रतौ सह सत्तविध० इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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