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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं ११३ उ०जो० । उजोव० उ० ५० क० १ अण्ण० चदुगदि० तीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो०। १९५. सम्मामिच्छा० छण्णं क० उ०प० क० ? अण्ण० चदुगदि० सत्तविध० उजो० । मणुसगदिपंचग० देव० णेरइ० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । सेसं दुगदि० अहावीसदि० सह सत्तविंध० उ०जी०। १९६. सण्णी० ओघं । णवरि थीणगिद्धिदंडओ अण्ण० चदुगदि० मिच्छादि. पजत्त० सत्तविध० उ०जो० । एवं सव्वाणं । असण्णीसु पंचणा०दंडओ उ०प० क० १ अण्ण० पंचिं० सव्वाहि सत्त विध० उ०जो० । एवं सव्वाणं । आहारा० ओघं । अणाहारा० कम्मइगभंगो। एवं उकस्ससामित्तं समत्तं । १९७. जह० पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंसणादोवेदणी०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-णीचुच्चागो०-पंचंत० ज० प० क० १ अण्ण० सुहुमणिगोदजीवअपञ्जत्तगस्स' पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स जहण्णए प्रदेशबन्धका स्वामी है। उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका जीव उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। १९५. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें छह कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यगतिपश्चकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर देव और नारकी है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी अट्ठारह प्रकृतियाके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त दो गतिका जीव है। १९६. संज्ञी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि स्त्यानगृद्धि दण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव है । इसी प्रकार सब कर्मो के विषयमें जानना चाहिए। असंज्ञी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कोन है सब पर्यानियोंसे पर्यात हआ. सात प्रकारके कर्मो का बन्ध का हुआ, सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर पश्चेन्द्रिय जीव उक्त दण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार सब कोका उत्कृष्ट स्वामित्व समझना चाहिए। आहारक जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। अनाहारकोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हआ। १९७. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, नीचगोत्र, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य योगसे युक्त और जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला अन्यतर प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ १. आ प्रतौ -णिगोदभपजसगस्स इति पाठः । १५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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