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महाबंधे पदेसबंधाहियारे मिच्छादि० आणदभंगो । इत्थि-पुरिस०-णीचा० पम्मभंगो । भवसिद्धिया० ओघं ।
१९३ वेदगे पंचणा०-छदंस०-सादासाद०-सत्तणोक०-उच्चा०-पंचंत० उ० प० क० १ अण्ण० चदुगदि० सत्तविध० उ०जो० । अपच्चक्खाण०४-पच्चक्खाण०४ ओघ । चदुसंज० पमत्त० अप्पमत्त० सत्तविध० उ०जो० । सेसा० ओधिभंगो। जस० थिरभंगो।
१९४. सासण० छण्णं क० चदुगदि० उ०जो० । दो आउ० चदुग० अहविध० उ०जो० । देवाउ० दुगदि० अट्ठविध० उ०जो०। दोगदि०-ओरा०-चदुसंठा०-ओरा०. अंगो०-पंचसंघ०-दोआणु०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-अणादे० क० ? अण्ण. चदुग० ऊणत्तीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । देवग०-पंचिं०-बेउ०-तेजा०-क०-समचदु०वेउ०अंगो०-वण्ण०४-देवाणु०-अगु०४-पसत्थ०-जस०४-थिरादितिण्णियुग०-सुभगसुस्सर-आर्दै०-णिमि० उ० प० क० ? अण्ण० दुगदि० अहावीसदि० सह सत्तविध०
स्वामी है, जिसका भङ्ग आनतकल्पके समान है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नीचगोत्रका भङ्ग पद्मश्याके समान है । भव्योंमें ओघके समान भङ्ग है।
१९३. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, उच्च गोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी को सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और प्रत्यख्यानावरण चतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। चार संज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर प्रमत्तसंयत और अप्रमत्त संयत जीव है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। यशःकीर्तिका भङ्ग स्थिरप्रकृतिके समान है।
१६४. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें छह कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी उत्कृष्ट योगवाला चार गतिका जीव है। दो आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त चार गतिका जीव है। देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त दो गतिका जीव है। दो गति, औदारिकशरीर, चार संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, पाँच संहनन, दो आनुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगति, पञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्र. संस्थान, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट
1. आ. प्रतौ अपचक्लाण०४ ओघं इति पाठः ।
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