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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं १११ सम्मा० मिच्छा० अहावीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो । आहार०२-तित्थ. ओघं । उज्जो० देव. तीस दि० सह सत्तविध० उ०जो० । १९२. सुक्काए पंचणा-[चदु०-] दंसणा०दंडओ ओघ । थीणगि०३-मिच्छ० अणंताणु०४ तिगदि० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । णिद्दा-पयंला-छण्णोक० उ० ५० क० १ अण्ण. तिगदि० सम्मा० सत्तविध० उ०जो० । असाददंडओ तिगदि. सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । अपचक्खाण०४-पचक्खाण०४-चदुसंज०. पुरिस० ओघं । मणुसाउ० देवस्स सम्मा० मिच्छा० अविध० उ०जो० । देवाउ. दुगदि० सम्मा० मिच्छा० अहविध० उ०जो० । मणुसगदिपंचग०' उ. प. क. ? अण्ण० देव० सम्मा० मिच्छा० वा एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । देवगदिपंचिं०-वेउन्वि-तेजइगादिदंडओ पम्माए भंगो। णवरि जस० ओघं । आहार०२-तित्थ. ओघं । पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-भग-दुस्सर-अणादें० उ० प० क० १ अण्ण. करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर देव उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। १९२. शुक्ललेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरणदण्डक ओघके समान है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकार कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि जीव है। निद्रा, प्रचला और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है? सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। असातावेदनीयदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क, प्रत्याख्यानावरणचतुष्क, चार संज्वलन और पुरुषवेदका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव है। देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव है। मनुष्यगतिपञ्चकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगति, पञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर और तैजसशरीर आदि दण्डकका भङ्ग पद्मलेश्याके समान है। इतनी विशेषता है कि यशःकीर्तिका भङ्ग ओघके समान है। आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका १. ता. प्रतौ मणुसाउ० देवस्स० सम्मा० मिच्छा० अविध० उ०जी० । मणुसगदिपंचग० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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