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________________ ११० महाबंधे पदेसबंधाहियारे अंगो०-वजरि०-मणुसाणु० उ०प० क० १ अण्ण० देव० सम्मा० मिच्छा० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो०। देवग०'-पंचिं०-उन्वि०-समचदु०-वेउव्वि०अंगो०-देवाणु०-पसत्थवि०-तस-सुभग-सुस्सर-आदें. उक्स्स . प. कस्स ? अण्ण. दुगदि० सम्मादिट्टि० मिच्छादिढि० अट्ठावीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । आहार०२-तित्थ० ओघं। चदुसंठा०--पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दुस्सर० उ० प० क० ? अण्ण० देव. एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । एवं पम्माए । णवरि इत्थि०-णस०-णीचा० देवस्स मिच्छादिढि० उ० जो० । तिरिक्ख-पंचसंठा०पंचसंघ-तिरिक्खाणु०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-अणादें देव० मिच्छा० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । मणुसगदिणामाए उ० प० क० ? अण्ण० देवस्स सम्मा० मिच्छा० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । देवग०-पंचिंदि०-वेउवि०तेजा-क०-समचदु०-वेउवि० अंगो०-वण्ण०४-देवाणु०-अगु०४-पसत्थवि०-तस०४थिरादितिण्णियु०-सुभग-सुस्सर-आर्दै०-णिमि० उ० प० क० ? अण्ण० दुगदि. मनुष्यगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मको उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगति, पश्चन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, देवगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर और आदेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर देव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार पद्मलेश्यामें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नीचगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी उत्कृष्ट योगवाला मिथ्यादृष्टि देव है। तिर्यश्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव है । मनुष्यगति नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव मनुष्यगतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगति, पश्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, देयगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकमेकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध १. ता.आ. प्रत्योः उ०जो० । णिमि० देवग० इति पाठः । २. ता प्रतौ ति रिक्ख० पंचसंघ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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