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________________ उत्तरपगदिपदेस घे सामित्तं १०९ दंड परपाद - उजवदंडओ णवुंसगभंगो । गवरि जस० थिरभंगो' । तित्थ ओघं । ०४ १९१. तेउ० पंचणा० - दोवेदणी० उच्चा० - पंचंत० उ० प० क० १ अण्ण० तिगदि० सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उ० जो० । श्रीणगि ०३ - मिच्छ० - अनंताणु इत्थि० उ० प० क० ? अण्ण० तिगदि० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । छदंस०सत्तणोक० उ० प० क० ? अण्ण० तिगदि० सम्मा० सत्तविध० उ०जो० | अपच्चक्खाण ०४ तिगदि० असंज० । पच्चक्खाण०४ ओघं । चदुसंज० उ० प० क० १ अण्ण० पमत्त० अप्पमत्त० सत्तविध० उ०जी० । णवुंस०-णीचा० उ० प० क० १ अण्ण० देव० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । तिरिक्खाउ० उ० प० क० ? अण्ण० देवस्स मिच्छा० अद्वविध० उ०जो० । मणुसाउ० उ० प० क० १ अण्ण० मिच्छा० सम्मा० अडविध० उ०जो० | देवाउ ० उ० प० क० १ अण्ण० दुर्गादि० सम्मा० अहविध० उ०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ आदाउज्जो० सोधम्मभंगो | मणुस ० -ओरा० उद्योत दण्डकका भङ्ग नपुंसकवेदी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि यशः कीर्तिका भङ्ग स्थिर प्रकृति के समान है । तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है । १६१. पीतलेश्या में पाँच ज्ञानावरण, दो वेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी है | स्त्यानगृद्वत्रिक, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्ध चतुष्क और स्त्रावेदके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। छह दर्शनावरण और सात नोकषायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । अप्रत्याख्यानावरण चारके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी तीन गतिका असंयत सम्यग्दृष्टि जीव है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका भङ्ग ओघके समान है । चा संज्वलन के उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कमका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशत्रन्धका स्वामी है । नपुंसकवेद और नीचगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव उक्त दो प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव तिर्यवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे यक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका सम्यग्दृष्टि जीव देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । तिर्यञ्चगतिदण्डक और आतप उद्योतका भङ्ग सौधर्म कल्प के समान है । मनुष्यगति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन और १. श्रा० प्रतौ णवरि वज्जरिस० थिरभंगो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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