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________________ १०६ महायंत्रे पदेसंबंधाहियारे भाणिदव्वं । आदाउजो० दुर्गादिं० मिच्छा० । सेसं इत्थिभंगो । अवगद० सत्तणं क० ओघभंगो । १८६. कोघ ०३ सत्तष्णं क० इत्थभंग । णवर चदुगदियो त्ति भाणिदव्वं । कोधसंज • मोह ० चदुविध० माणे मोह० तिविध० मायाए दुविध० । सेसं ओघभंगो । लोमे० ओघं । १८७. मदि० - सुद० पंचणा० - णवदंसणा ० - दोवेदणीय - मिच्छ० - सोलसक०raणोक० - दोगोद० पंचंत० उ० प०बं० क० १ अण्ण० चदुगदि० पंचिं० सण्णि० सव्वाहि पज० सत्तविध० उ०जो० । णिरय ० -देवाउ० उ० प०बं० क० १ अण्ण० दुर्गादि० सष्णि० अड्डविध० उ०जो० । तिरिक्ख- मणुसाउ ० उ० प० क० १ अण्ण चदुगदि ० पंचि ० सण्णि० अट्ठविध० उ०जो० । दोगदि ० - वे उव्वि ० समचदु० - चेउव्वि० अंगो० - दोआणु० - दोविहा० सुभग- दोसर आदें० उ० प० क० १ अण्ण० दुर्गादि० अट्ठावीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । वजरि० उ० प० क० १ अण्ण० चदुर्गादि० पंचि० सणि० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० | सेसाणं पगदीणं ओघं । एवं गतिके जीवको कहना चाहिए । आतप और उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेश बन्धका स्वामी दो गतिका मिध्यादृष्टि जीव है। शेष भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। अपगतवेदी जीवों में सात कर्मोंका भङ्ग भोके समान है । १८६. क्रोध आदि तीन कषायोंमें सात कर्मोंका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि चार गतिका जीव स्वामी है ऐसा कहना चाहिए। तथा मोहनीयकी चार प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला क्रोध संज्वलनके, मोहनीयकी तीन प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला मानसंज्वलनके तथा मोहनीयकी दो प्रकृतियों का बन्ध करनेवाला मायासंज्वलन के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । शेष भङ्ग ओघके समान है। लोभकषायमें ओघके समान भङ्ग है । १८७. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय, संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । नरकायु और देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका संज्ञी जीब उक्त दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । तिर्यवायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय संज्ञी जीव उक्त दो आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो गति, वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर और आदेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अट्ठाईस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । वज्रर्षभनाराचसंहननके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय संज्ञी जीव उक्त प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार अभव्य, मिध्यादृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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