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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं १०५ अण्ण० पमत्त० अप्पमत्त० सत्तविध० उ०जो० । पुरिस० उ० प०बं० क० १ अण्ण० arrao मोह० पंचविध० उ० जो० । आउ० ओघं । णिरयगदि४दंडओ तिरिक्खगदिदंडओ मणुसगदिदंडओ देवगदिदंडओ ओघं । चदुसंठा० चदुसंघ० उ० प०बं० क० ? अण्ण० तिगदि० सण्णि० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । आहार०२ ओघं । वजरि० उ० प०बं० क० ? अण्ण० तिगदि० सम्मादि० मिच्छादि० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । पर० - उस्सा० - पज्ज० - थिर- सुह० उ० प०बं० क० १ अण्ण० तिगदि ० पणवीस दिणामाए सह सत्तविध० उ० जो० । आदाउजो० उ० प०बं० क० १ अण्ण० तिगदि० छब्बीस दि० सह सत्तविध० उ०जो० । जस० उ० प०बं० क० १ अण्ण० णामाए एगविध० उ० जो० । तित्थ० उ० प०बं० क० १ अण्ण० मणुस • एगुणतीस दि० सह सत्तविध० उ०जो० । ० ० १८५. वुंसगे सत्तणं क० इत्थिभंगो । णेरइगग दि- मणुस गदि - तिरिक्खगदिदंडओ ओघं । देवगदिदंडओ च । पर० -उस्सा० - पज० - थिर- सुभ० दुर्गादियस त्ति I संज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके उकृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी हैं । पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? मोहनीय कर्मकी पाँच प्रकृतियों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर अनिवृत्तिकरण जीव पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है । नरकगतिचतुष्कण्डक, तिर्यञ्चगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक और देवगतिदण्डकका भङ्ग ओघके समान है। चार संस्थान और चार संहननके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर तीन गतिका संज्ञी मिध्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी है । आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है । वज्रर्षभनाराचसंहननके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। परघात, उच्छ्रास, पर्याप्त, स्थिर और शुभके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आतप और उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्म की छब्बीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । यशः कीर्तिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है १ नामकर्मकी एक प्रकृतिका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर जीव यशःकीर्तिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य उक्त प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। १८५. नपुंसकोंमें सात कर्मोंका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । नरकगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक और तिर्यञ्चगतिदण्डकका भङ्ग ओघके समान है । तथा देवगतिदण्डक ओघके समान है । परघात, उच्छ्रास, पर्याप्त, स्थिर और शुभ इनके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी दो १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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