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________________ १०४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे पंचिं. सण्णि० उ०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ मणुसगदिदंडओ चदुसंठा० चदुसंघ०दंडओ ओघं। णवरि अप्पसत्थवि०-दुस्सरपविट्ठ। वरि० ओघं । देवगदिदंडओ दुगदि० सम्मादि० उ०जो०। पर०-उस्सा०-थिर-सुभ-जस० उ० प०ब. क. ? अण्ण० तिगदि० सण्णि. मिच्छा. पणवीसदि० सह सत्तविध० उ० जो० । आदाउजो० उ० प०० क.? अण्ण. तिगदि० पंचिं० सण्णि० मिच्छा. छब्बीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । तित्थ० उ० प०बं० क० । अण्ण० मणुस० सम्मादि० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० उ०जो० । १८४. इत्थि-पुरिसेसु पंचणा०-सादांसाद०-उच्चा०-पंचत० उ०प०बं० क.? अण्ण. तिगदि० सण्णि० मिच्छा० सम्मादि० सत्तविध० उ०जो० । थीणगिद्धिदंडओ तिगदि० सणि० मिच्छादि० सत्तविध० उक्क०जोगि० । णिद्दा-पयला-हस्सरदि-अरदि-सोग-भय-दु० उ० प० क० १ अण्ण० तिगदि० सम्मादि० सत्तविध० उ० जो०। चदुदंस० उ० प०७० क.? अण्ण० दंसणावरणीयस्स चदुविध० उ०जो०। अपचक्खा०४-पचक्खाणा०४-ओघ । चदुसंज. उ० प०० क. ? बन्धका स्वामी है। तियश्चगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक और चार संस्थान व चार संहनन दण्डकका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें अप्रशस्तविहायोगति और दुःस्वर को प्रविष्ट करके उत्कृष्ट स्वामित्व कहना चाहिए । वर्षभनाराचसंहननका भङ्ग ओघके समान है। देवगतिदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट योगवाला दो गतिका सम्यग्दृष्टि जीव देवगतिदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। परघात, उच्छास, स्थिर, शुभ और यशःकीर्तिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियांके साथ सात प्रकारके कौका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आतप और उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कीन है ? नामकमेकी छब्बीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका पञ्चेन्द्रिय,संज्ञी, मिथ्यादृष्टि जीव उक्त दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीर्थकर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उस्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। १८४. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका संज्ञी, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धिदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगवाला तीन गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव है । निद्रा, प्रचला, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त तीन गतिका सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। चार दर्शनावरणके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है। दर्शनावरणीयकी चार प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क और प्रत्याख्यानावरण चतुष्कका भङ्ग ओषके समान है। चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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