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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं १०३ णामाए सह सत्तविध० उ०जो० । एवं वेउब्बियमि० । णवरि से काले सरीरपजत्ती गाहिदि त्ति। १८२. आहारका० पंचणा०-छदसणा०-दोवेदणी०-चदुसंज०-सत्तणोक०-उच्चा०पंचंत० उ० प०७० क० ? अण्ण० सत्तविध० उ०जो० । देवाउ० उ० क. ? अण्ण. अहविध० उ०जो० । देवग० अट्ठावीसं पगदीओ उ०प० क० ? अण्ण. अट्ठावीसं सह सत्तविध० उ०जो० । तित्थ.' उ. प०७० क.? अण्ण० एगुण० सह सत्तविध० उ०जो० । एवं आहारमि० । णवरि से काले सरीरपजत्ती गाहिदि ति । एवं आउगबं० । १८३. कम्मइ० पंचणा०-सादासाद०-उच्चा०-पंचंत० उ० प०० क? अण्ण० चदुग० सण्णि० मिच्छा० सम्मा० सत्त विध० उ०जो० । थीणगिद्धिदंडओ छदसणा०दंडओ उ ० प०० क० ? अण्ण० मिच्छा० सम्मादि० यथासं० चदुग० उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो अनन्तर समयमें शरीरपर्याप्ति पूर्ण करेगा उसे उत्कृष्ट स्वामित्व देना चाहिए । १८२. आहारककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, दो वेदनीय, चार संज्वलन, सात नोकषाय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर आहारककाययोगी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर आहारककाययोगी जीव देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगति आदि अट्ठाईस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर आहारककाययोगी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर आहारककाययोगी जीव तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आहारकमिश्र काययोगी जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो अनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको पूर्ण करेगा उसे स्वामित्व देना चाहिए । इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कहना चाहिए। १८३. कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धिदण्डक और छह दर्शनावरणदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? चार गतिका पञ्चेन्द्रिय, संज्ञी और उत्कृष्ट योगवाला कार्मणकाययोगी क्रमसे अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव स्त्यानगृद्धिदण्डकके तथा सम्यग्दृष्टि जीव छह दर्शनावरण दण्डकके उत्कृष्ट प्रदेश १. श्रा०प्रतौ पंचंत० प. बं० क० ? अण्ण० सत्तविध० उ० जो । तित्थ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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