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________________ महाबंचे पदेसंबंधाहियारे ० १८१. वेउव्वियका० पंचणा० - सादासाद ० उच्चा०- पंचत० उ० प्र०व० क० १ अण्ण• देवस्स वा णेरइयस्स वा सम्मा० मिच्छा० सव्वाहि पज्जत्ती हि० सत्तविध उ० जो० । एवं थीणगिद्धिदंडओ | णवरि मिच्छा० भाणिदव्वं । छदंसणा ० - बारस क०सत्तणोक० दंडओ सम्मादि० भाणिदव्वं । तिरिक्खाउ० उ० प०बं० क० १ अण्ण० देवस्स वा णेरइयस्स वा मिच्छादि० अद्वविध० उ०जो० । मणुसाउ० उ० प० क० ? अण्ण० देव० णेरइयस्स वा सम्मा० मिच्छा० अनुविध० उ०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ देवोघं । देवग० मिच्छा० । मणुसग० पंचिं० समचदु० -ओरा० अंगो० - वञ्जरि ० - मणुस ाणु ० - पसत्थवि० सं० [सुभग०-] सुस्सर-आदें० उ० प० ० क० ? अण्ण० देव० र० सम्मा० मिच्छा० एगुणतीस दिणामाए सह सत्तविध ० उ० जो० । चदुसंठा० - पंचसंघ० - अप्पसत्थवि० दुस्सर० उ० प०ब० क० १ अण्ण० देव० रह० मिच्छादिट्ठिस्स एगुणतीस दिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । आदाउजो० उ० प० ० क० ? अण्ण० देव० मिच्छा० छब्बीसदि० सह सत्तविध ० उ० जो० । तित्थ० उ० प०ब० क० १ अण्ण० देव० णेरह० सम्मा० तीसदि1 १०२ १८१. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय; असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार स्त्यानगृद्धिदण्डकके विषय में जानना चाहिए। इतना विशेष है कि इनका उत्कृष्ट स्वामित्व मिथ्यादृष्टिके कहना चाहिये । छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकषाय दण्डकका उत्कृष्ट स्वामित्व सम्यग्दृष्टिके कहना चाहिये । तिर्यवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारकी तिर्यवायु के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव और नारकी मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी है । तिर्यञ्चगतिदण्डकका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । मिध्यादृष्टि देव उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध स्वामी हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । मनुष्यगति, पचेन्द्रियजाति, समचतुरस्र संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर और आदेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कमका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्त्ररके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर मिध्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आतप और उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव उक्त दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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