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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सामितं विध० उ० जो० से काले सरीरपजनीहि जाहिदि ति । थीण०३ - मिच्छ० - अणताणु०४इत्थि० स ० -णीचा० उ० प० क० ? अण्णदर० सण्णि० मिच्छादि ० उवरि जाणा० भंगो । छदंसणा० - बारसक० सत्तणोक० उ० प०ब० क० ? अण्ण० सम्मा० णाणा० भंगो । दोआउ० उ० प०ब० क० ? अण्ण० पंचिं० ' सण्णि० मिच्छा० अष्टविध ० उ० जो० । तिरिक्खगदिदंडओ मणुस ० चदु संठा ० - पंचसंघ ० दंडओ ओरालियकायजोगिभंगो । वरि जसगित्ति० मणुसगदिदंडए भाणिदव्वं । आलाओ [अप्पसत्थवि० दुस्सर० ] णवुंसगभंगो | देवग० - वेड व्वि ० - समचदु० - वेउच्चि ० अंगो०-देवाणु०पसत्थवि० - सुभग' - सुस्सर-आदें० उ० प०ब० क० १ अण्ण० तिरिक्ख० मणुस ० वा सम्मा० अट्ठावीस दिणामाए सह सत्तविध० उ० जो० से काले सरीरपजत्तीहि गाहिदि त्ति । आदाउजो० उ० प०ब० क० ? अण्ण० दुर्गादि० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० छब्बीस दिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । उवरि णाणा० भंगो । तित्थ० उ० प०चं० क० १ अण्ण० मणुस० सम्मा० एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । उवरि णाणा० भंगो । उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर पंचेन्द्रिय संज्ञी सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टि जो कि अनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति पूर्ण करेगा वह उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नीचगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर संज्ञी मिध्यादृष्टि जीव स्वामी है । यहाँ आगेके विशेषण ज्ञानावरणके समान जानने चाहिये छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकपायों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है। शेष विशेषण ज्ञानावरणके समान हैं । दो आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिध्यादृष्टि जीव दो आयुओं के उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी है । तिर्यञ्चगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक, चार संस्थान और पाँच संहननusaar भङ्ग औदारिककाययोगी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि यशःकीर्तिको मनुष्यगतिदण्डकमें कहना चाहिये । आलाप तथा अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका भङ्ग नपुंसकवेदके समान है । देवगति, वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैकियिक आङ्गोपाङ्ग, देवगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर तिर्यन और मनुष्य सम्यग्दृष्टि जो अनन्तर समय में शरीरपर्याप्ति को पूर्ण करेगा, वह उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी है। आतप और उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर दो गतिका पञ्चेन्द्रिय, संज्ञी, मिध्यादृष्टि जीव उक्त दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इससे आगे ज्ञानावरणके समान भङ्ग है | तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य सम्यग्दृष्टि तीर्थङ्कर प्रकृति के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। ऊपर ज्ञानावरणके समान भङ्ग है । १. आ० प्रतौ क० ? पंचिं० इति पाठः । २. ता०आ०प्रत्योः पसत्थवि० पंचिं० सुभग इति पाठः । Jain Education International १०१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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