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________________ महाबंचे पदेसंबंधाहियारे सुभग-सुस्सर-आज- णिमिण० उक्क० पदे०चं० क० १ अण्ण० सव्वाहि पज० पञ्जत० एगुणतीस दिणामाए सह सत्तविध ० उ० जो० । एवं तित्थकरणामाए पि । णवरि तीस दिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । १०० १७८. पंचिं ०२ ओघं । णवरि सष्णि त्ति भाणिदव्वा' । तस-तसपजत्तगाणं ओघं । वरि अण्णदरस्स पंचिंदिय ति सणि त्ति भाणिदव्वा । १७९. पंचमण० - तिण्णिवचि० ओघं । णवरि सणि ति पञ्जत्त त्तिण भाणिदव्वं । वचिजो०- असच्च० मोस० ओघं । णवरि पंचिं० सणि ति भाणिदव्वं । कायजोगि० ओघं । १८०. ओरालि० ओघं । णवरि दुर्गादि० तिरिक्ख० मणुस० । मणुसाउ० मिच्छादि० उ०जो० । मणुसगदिदंड ए पर० - उस्सा ० - पज० - थिर - सुभ० पणवीस दिनामाए सह सत्तविध ० उ०जी० । चदुसंठा० - पंच संघ० उ० प०ब० कं० १ अण्ण० एगुणतीस दिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । ओरालियमि० पंचणा० - दोवेदणी०• उच्चा० - पंचत० उ० प०ब० क० १ अण्ण० पंचिं० सण्णि० सम्मा० मिच्छा० सत्त विहायोगति, त्रसादि चार, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुवर, आदेय और निर्माणके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर देव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार तीर्थङ्कर नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामित्व भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कमका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त उक्त देव तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी है । १७८. पचेन्द्रियद्विकमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि संज्ञी ऐसा कहना चाहिए । त्रस और त्रसपर्याप्तकोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अन्यतर पचेन्द्रिय, संज्ञी खामी है ऐसा कहना चाहिए । १७९. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि संज्ञी और पर्याप्त ऐसा नहीं कहना चाहिए। वचनयोगी और असत्यमृषावचनयोगी जीवों में ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि संज्ञी, पंचेन्द्रिय कहना चाहिये । काययोगी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है । १८०. औदारिककाययोगी जीवोंमें ओधके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि तिर्यव और मनुष्य इन दो गतियोंके जीवोंको स्वामी कहना चाहिये | मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका उत्कृष्ट योगवाला मिथ्यादृष्टि जीव स्वामी है । मनुष्यगतिदण्डक, परघात, उच्छ्रास, पर्याप्त, स्थिर और शुभके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पचीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। चार संस्थान और पाँच संहननके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, दो वेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके १. ता०प्रतौ सण्णि त्तिण भाणिदव्वं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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