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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे सव्वत्थो०' सत्तण्णं क० जह०पदे. जीवा । उक्त पदे० जीवा संखेजगु० । अजहण्णमणुपदे० जीवा संखेंज गु० । आउ० आणदभंगो। १६३. पंचमण-पंचवचि० अट्टण्णं क०. सव्वत्थो० उक्क० पदे० जीवा । जह०पदे० जीवा असं०गु० । अजहण्णमणु पदे. जीवा असंगु०। [वेउवि०-] वेउवि०मि० तेउ ०-पम्म०वेदग०-सासण०णिरयभंगो। आहार० अट्टण्णं क० सव्वत्थो ज०पदे. जीवा । उक्त पदे. जीवा संखेंगु० । [ अजहण्णमणु०पदे० जीवा सं०गु०] । आहारमि० अटण्णं क० सव्वत्थो० उक्क०पदे० जीवा । जह०पदे. जीवा संखेंगु० । अजहण्णमणु० पदे० जीवा संखेंगु० । एवं अवगद०-मणपज०-संज०-सामाइ०-छेदो०परिहार०-सुहुम० । १६४. विभंग० अहणं क० सव्वत्थो० उक्क० पदे० जीवा । जह०पदे० जीवा असं०गु० । अजहण्णमणु०पदे० जीवा असंगु० । आभिणि सुद-ओधि० सत्तण्णं क० मणुसोपं । मोह० सव्वत्थो० ज०पदे० जीवा । उक्क०पदे० जीवा असं०गु० । अजहण्णमणु०पदे० जीवा असं०गु० । एवं ओधिदं०-सुक्क०-सम्मा०-खइग०-उवसम० । णवरि सर्वार्थसिद्धिमें सात कोंके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । आयुकर्मका भङ्ग आनत कल्पके समान है। १६३, पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें आठों कोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। [वैक्रियिककाययोगी,] वैक्रियिकमिश्र काययोगी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, वेदकसम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। आहारककाययोगी जीवोंमें आठों कोंके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें आठों कोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार अपगतवेदी, मनःपर्ययनानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें जाननो चाहिए । १६४. विभङ्गज्ञानी जीवोंमें आठों कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में सात कर्मोंका भङ्ग सामान्य मनुष्योंके समान है । मोहनीयके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्या और क्षायिक १.ताप्रतौ तसाणं च णित्यभंगो सत्रयो० इति पाठः । २. ता प्रती जी. ज. असंगु० इति पाठः । ३. ताप्रती आहार० अ४० अण्णं (?) सम्वत्थो० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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