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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे भागाभागसमुदाहारो सुक्क० खइग० आउ० आणदभंगो । छण्णं क० सव्वत्थो० उक्क०पदे० जीवा । जह०पदे० जीवा संखें ० गु० । अजहण्णमणु० पदे० जीवा असं० गु० । संजदासंजदा देवभंगो । चक्खु • तसपजत्त भंगो । सम्मामि० मणजोगिभंगो | एवं अप्पा बहुगं समत्तं । एवं मूलपगदिपदेसबंध समत्तो । २ उत्तरपगदिपदेसबंधो १६५. एत्तो उत्तरपगदिपदेसबंधे पुव्वं गमणीयं भागाभागसमुदाहारो । अडविधबंधगस्स यो णाणावरणीयस्स ऍक्को भागो आगदो चदुधा विरिको । आभिणिबोधियretarutra ऍक्को भागो । एवं सुद० - ओधिणा० - मणप० । तत्थ यं तं पदेसग्गं सव्वधादिपत्तं तदो ऍक्केंक्स्स णाणावरणीयस्स सव्वघादीणं पदेसग्गस्स चदुभागो ति णादव्वो । यो दंसणावरणीयस्स भागो आगदो सो तिधा विरिको । चक्खुदंसणावरणीयस्स ऍको भागो । एवं अचक्खुदं ० अधिदं । तत्थ यं तं पदेसग्गं सव्वघादिपत्तं तदो ऍक्केंकस्स दंसणावरणीयस्स सव्वधादिपदेसग्गस्स विभागो ति णादव्वो । यदि णाम एदाओ चेव तिष्णि पगदीओ भवेजसु सेसाओ छप्पगदीओ ण भवेअसु दो चक्खु ० - अक्खु ० अधिदं० सव्वघादिपदेसग्गस्स विभागमै सो भवे । तथा विधिणा O सम्यग्दृष्टि जीवोंमें आयुकर्मका भङ्ग आनतकल्पके समान है । तथा छह कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । संयतासंयत जीवोंमें देवोंके समान भङ्ग है । चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें त्रसपर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंनें मनोयोगी जीवोंके समान भङ्ग है । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । इस प्रकार मूलप्रकृतिप्रदेशबन्ध समाप्त हुआ । २ उत्तरप्रकृतिप्रदेशबन्ध १६५. आगे उत्तरप्रकृतिप्रदेशबन्ध में सर्वप्रथम भागाभागसमुदाहार जानने योग्य हैआठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाले जीवको जो ज्ञानावरणीय कर्मका एक भाग प्राप्त होकर चार भागों में विभक्त हुआ है उनमेंसे भाभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय कर्मका एक भाग है । इसी प्रकार श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय और मनःपर्ययज्ञानावरणीय कर्मों के विषयमें जानना चाहिए। वहाँ पर जो प्रदेशाम सर्वघातिपनेको प्राप्त है उसमेंसे इन चार मेंसे एक एक ज्ञानावरणीय के लिये सर्वघातियोंके प्रदेशाप्रका चौथा भाग जानना चाहिए। जो दर्शनावरणीयका भाग आया है वह तीन भागों में विभक्त हुआ है । उनमें से चक्षुदर्शनावरणीय कर्मको एक भाग मिला है। इसी प्रकार अचक्षुदर्शनावरणीय और अवधिदर्शनावरणीयके लिये एक-एक भाग जानना चाहिए। वहाँ जो प्रदेशाम सर्वधातिपनेको प्राप्त हैं, उनमेंसे इन तीनमें एक-एक दर्शनावरणीयके लिये सर्वघाति प्रदेशाप्रका तीसरा भाग जानना चाहिये । यदि ये तीन प्रकृतियाँ ही हों, शेष छह प्रकृतियाँ न हों तो चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण के लिये सर्वघाति प्रदेशाप्रका तीसरा भाग होवे किन्तु यथाविधि अन्य छह प्रकृतियाँ भी हैं। चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरणमें से प्रत्येकके लिए सर्वघाति प्रदेशाप्रका तीसरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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