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पदणिक्खेवे समुत्तिणा
आभिणि-सुद-ओधिणा० - चक्खु ०-ओधिदं० [सुक्क० ] सम्मा० [खड्ग०] उवसम० - सण्णिति । एवं मणुसपजत्त मणुसिणीसु । णवरि संखेंजं कादव्वं । एवं सव्वदेवाणं संखजरासीणं । अवगद० सव्वत्थो० अवत्त ० । अवद्वि० सं० गु० । अप्प० संखे० गु० | भुज० विसे० । एवं सुहुमसं० । अवत्त ० णत्थि । एवं याव अणाहारग ति णेदव्वं । एवं भुजगारबंधो समत्तो पदणिक्खेवे समुत्तिणा
१४६. तो पदणिक्खेवे त्ति तत्थ इमाणि तिष्णि अणियोगद्दाराणि - समुक्कित्तणा सामित्तं अप्पाबहुगे त्ति । समुक्कित्तणा दुविः - ज० उ० । उ० प० । दुवि० - ओघे० " आदे० | ओघे० अट्टणं क० अत्थि उक्कस्सिया वड्डी उकस्सिया हाणी उक्कस्यमट्ठाणं । एवं याव अणाहारग ति णेदव्वं । णवरि वेड ०मि० - अहारमि० - कम्मइ ०अणाहार त अत्थि उ० वड्डी ।
१४७. जह० पदं । दुवि० - ओघे० आदे० । ओघे० अण्णं क० अत्थि जह० वड्डी ० जह० हाणी जह० अवद्वाणं । एवं याव अणाहारग त्ति दव्वं । णवरि व्वि०मि० - आहार मि०- कम्मइ० - अणाहारग० अस्थि जह० वड्डी |
ज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि यहाँ संख्यात कहना चाहिए। इसी प्रकार शेष सब देव और संख्यात राशियोंमें जानना चाहिए | अपगतवेदी जीवोंमें अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्यपद नहीं है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए ।
इस प्रकार भुजगारबन्ध समाप्त हुआ ।
पदनिक्षेप समुत्कीर्तना
१४६. आगे पदनिक्षेपका प्रकरण है । उसमें ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं - समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व | समुत्कीर्तना दो प्रकारकी है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारकमिश्र काययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में उत्कृष्ट वृद्धि है ।
१४७. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघ आठों कमको जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणात जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें जघन्य वृद्धि है ।
इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई
१. श्रा० प्रतौ समुक्कित्तणा दुवि० ओघे इति पाठः । २ ता०प्रतौ श्राहारमि० [ कम्मइ० ] आहारगति, आ० प्रतौ आहारमि० कम्मइ० श्रहारगत्ति इति पाठः ।
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