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________________ सटीकं मूलशुद्धिप्रकरणम् तो जंपइ सेणिउ 'सव्वजे?, तुहु पिययम ! महु गुणगणवरिट !, निवु चेल्लणलाहिँ हि हिट्ठचित्तु, वरमित्तविणासिं सोयतत्तु, चेल्लण वि भगिणिवंचणविसन्न, सेणियबरलाहिं अइपसन्न, संपत्तु नरिंदु कमेण गेहिं, तहिँ चेल्लण मेल्लवि वैडभडेहिं, परिवारिउ नागह गेहि पत्तु, सुयमरणु कहइ अंसुय मुयंतु, तं सुणवि नागु सहुँ परियणेण, अकंदइ दुखिउ इय मणेण, 'हा पुत्त ! पुत्त ! कहिँ तुम्हि पत्त, जमगेहि अयं. वि जीय चत्त, हा दारुणदुक्खमहन्नवम्मि, हउँ काइँ खित्तु विहि ! दुत्तरम्मि, हा हा निरु निग्विण ! अइअणज !, एउ काइँ विहिउ पइँ विहि ! अलज्ज !, जं एक्कु कालु मह नंदणाहं, हिउ जीविउ अरिबलमदणाहं, मई जाणिउ किर विद्धत्तणम्मि, पालेसहिँ सुय हरिसिउ मणम्मि, तं सव्वु निरत्थउं मज्झ जाउ', इय विलवइ सो भूललियकाउ. निवडिय सुलसा वि य धरणिवट्टि, गयबंधण जह किर इंदलट्ठि, आसासिय परियणि रुयइ दीणु, 'सइँ कियउं एउ मइँ मइविहीणु, जइ भग्ग! अलक्खण हउं अपुन्न, समयं गुलियाउ न खंतऽवुण्ण, तो मज्झ एउ नवि दुक्खु इंतु, समगं सुयमरणसमुब्भवंतु, हा पुत्त ! पुत्त ! कसु निययवयणु, तुम्हाहँ मरणि दंसेमु दीणु, हा एक्कु कालु हउँ किय अणाह, कसु पुरउ पुत्त ! मेल्लेमि धाह ?', इय ताहँ रुअंतहँ, दुहसंतत्तहँ, भणइ अभउ एरिसु वयणु । 'जाणिय संसारहँ, अइसुवियारहँ, नवि जुज्जइ सोगह करणु ॥ १२ [१३] जेण भो एस संसारवित्थारओ, सक्ककोदंडविजुच्छडासारओ, संज्झमेहावलीरायरेहासमो, मत्तमायंगकन्नंतलीलोवमो, उन्हकालम्मि मायण्हियासच्छहो, वायवेउद्भुयाऽऽलोलतूलप्पहो, सायरुटुंतकल्लोलमालाचलो, कामिणीलोयणक्खेववच्चंचलो, एरिसे एत्थ अच्चंतनीसारए, केम्व तुम्हाण सोगो मणं दारए ?, जेण तुम्हेहिँ सव्वन्नुणो भासियं, जाणिऊणं सरीरेण संफासियं, किंच मच्चू न देवेहिं रक्खिज्जए, पोरुसेणं बलेणं न पेलेज्जए, मंत-तंतोसहेहिं न वारिजए, भूरिदव्वव्वएणं न धारिजए, तो वियाणित्तु संसाररूवं इमं, सोयमुझेत्तु कुव्वेह धम्मुज्जमं, जेण नो अन्न जम्मे वि एयारिस, होइ तुम्हाण दुक्खं महाकक्कस', इय अभयह जंपिउ सुणवि बुहप्पिउ, किंचिसोयपरिवज्जियई । कयलोइयकिच्चइं, विहियजिणऽच्चइं, जायइ धम्मसमुज्जयई ॥ १३ 10 D °लाभि हि। 20 D बहुभडेहिं। 3 A B तुम्हाहिं। 40 D तुब्भेहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001387
Book TitleMulshuddhiprakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size21 MB
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