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सुलसाख्यानकम् ता भणइ जेट्ट 'मह रयणपुन्न, वीसरिय करंडी बहुसुवन्न, आणेमि जाव सा पहु ! महऽत्थ, खणु एक विमालह ताव एत्थ', गय जाव जेट इत्तिउ भणेवि, ता वुत्तु नराहिवु कम नमेवि, सुलसासुएहिँ 'अरिगेहि देव!, चिरु कालु विलंबु न जुत्तु एव', तं निसुणवि सेणिउ वलिउ झत्ति, चेल्लण गिण्हेविणु रूववंति, अह जेट्ठ पत्त एत्थंतरम्मि, दुयवियड सुरंगहि वरमुहम्मि, तं सुन्नु निएविणु विणु विमदि, धाहाविउ तीऍ महंतसद्दि, 'हा मुट्ठ मुट्ठ दे धाह धाह, मह भगिणि हरिजइ ऍह अणाह', तं निसुणवि कोवफुरंतउद्दु, करघायवियारियभूमिबहु, सन्नद्धउ चेडयराउ जाव, वीरंगउ भडु विन्नवइ ताव, 'पहु ! खेउ करहिं किं एत्थ कजि?, आएसु देहि लहु मइ विसजि', वीसज्जिउ तो निवचेडएण, सो दिन्ननिययकरबीडएण, लहु मज्झि सुरंगहि जाम्ब जाइ, ता पेच्छइ रह ते रविहि नाइ, कमसंठिय नागह पुत्त तेसु, असुर व्य नियच्छइ नं सुरेसु, अह एक्कु बाणु मेल्लेवि तेण, ते मारिय भड वीरंगएण, संकिन्नसुरंगमुहम्मि जाव, बत्तीस वि रह अवणेइ ताव, गउ सेणिउ लंघवि दूरदेसु, इयरो वि वलिवि गउ जहिं नरेसु, साहेइ असेस वि तस्स वत्त, पणमंतसीसु जा जेंव वित्त, धूयावहारि दूमिउ नरेसु, सेणियभडमारणि हूँ सतोसु, जेट वि मणि चिंतइ तं सुणेवि, निम्विन्नकाम भवगुण मुणेवि, 'धिसि घिसि धिरत्थु भोगाहँ जेत्थु, वंचइ नियभगिणि वि इय निरत्थु, धिसि घिसि मलमुत्तसमुब्भवाहं, कामाहँ विहियबहुपरिभवाहं, धिसि धिसि खणमेत्तसुहावहाहं, कामाहँ नरयपुरसुप्पहाहं, धिसि घिसि पजंतदुहाऽऽकराहं, कामाहँ अथक्कविणस्सराहं, घिसि घिसि गुणसालमहानलाहं, कामाहँ विणासियतणुबलाहं, एयाण उवरि जो रइ करेइ, सो दुक्खहँ अप्प धुरि धरेइ, तो परिहरामि' चितेवि एउ, गय जणयह पासि करेवि वेउ, अक्खइ नीसेसु वि तासु कजु, मई ताय ! विसज्जि झडत्ति अंज, तो तेण विसज्जिय, हुय सा अज्जिय, बंभचेर-तव-नियमैधर । गुणरयणिहि मंडिय, आगमि चड्डिय, चंदणऽजपासम्मि वर ॥ १
[१२] एत्तो य मग्गि सेणिउ तुरंतु, वच्चइ जे? त्ति समुल्लवंतु,
सा पभणइ 'न वि हउं जेट्ट सामि !, तहु भगिणि लहुय चेल्लण भवामि !, 1 C D वुत्त नराहिव। 20 D चिरका । 3 C D धाहावि। 4 C D एत्थु। 50D मय। 6A B करपीड, E करवाड। 7 ह्रस्वतोषः, भूतः सतोषो वा। 8 C D ता। 90 D कज्ज। 100D अज । 11 0D °मवर। 12 C D तहि ।
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