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सुलसाख्यानकम्
[१४] सेणिय-अभया वि य सह नरेहि, उठ्ठित्तु पत्त नियनियघरेहि, नियधम्मकम्मपरिसंपउत्त, कालेण जाय गयसोगगत्त, अह एत्तो चंपापुरवरीए, तियसिंदनयरिगुणगणधरीए, गामा-ऽऽगर-नगरहि विहरमाणु, असुरिंदसुरिंदिहि विहियमाणु, मारारिवीरनिदलियमाणु, उप्पाडियकेवलदिव्वनाणु, मिच्छत्ततिमिरहरणेक्कभाणु, संपत्तु जिणेसर वद्धमाणु, तियसा-ऽसुरकयओसरणि धम्मु, परिसाएँ मज्झि सो कहइ रम्मु, जह भवसमुद्दि किर मणुयजम्मु, कह कहवि हु लब्भइ खवियकम्मु, तत्थ वि य जिणिंदह तणउ धम्मु, कों वि लहइ सउन्नउ परमरम्मु, ता धम्मकजि उज्जमु करेह, अइदरियपमायरिवू दलेह, पंचविहमहव्ययभरु धरेह, अइदुक्कर बहुविहु तैउ करेह, जिं पावह गयदुहु मोक्खमग्गु, अहवा वि सुरंगणरम्मु सग्गु, एत्थंतरि भिसिय-तिदंडहत्थु, छत्त(?न्न)यछन्नालयजुत्तु सत्थु, अम्मडु नामेण गुणोहजुत्तु, परिवायगु सावयधम्मवंतु, संपत्तु जिणिंदह वंदणत्थु, काऊण पयाहिण गुणमहत्थु,
सकत्थउ भणवि पणामचंग. संथणइ एम्ब रोमंचियंग, जय अमरनयचरण ! मयधरणकरचरण !, गयमरण ! गयकलह ! हयमयणगयकलह !, जय कम्मरयसमण !, कयअणहगणसमण!, जय भव्वजणसरण! तव-चरणधरसरण, जय नट्ठकलकलय! भवतत्तजणमलय !, जग(?य) भवणबलहरण ! परसमयबलहरण!, जय डमररयजलय ! नरभमरवरजलय !, घणरसयदलनयण!, अपवग्गगमनयण!, जय सयलजगपणय ! दयपरमवरपणय!, समकट्ठ-धणरयण ! वरसवण-कररयण!, जय सजलघणपसर ! खयकवडभडपसर !, वयभरयमहधवल! जसपसरभरधवल 1, जय करणयदमण ! मयमत्तगयगमण!, छलसप्पकप्परण !, भवरयणवयतरण !,
इय अखलियसासण !, भवभयनासण!, वीरनाह ! पहु ! विगयमल !। दीणहँ दय किजउ, मह सिवु दिजउ, देवचंदनयपयकमल ! ॥ १४
॥ एकखरस्तुतिः ॥ [१५] इय थुणवि निसन्नउ जिणहँ पासि, आयन्नइ धम्मु गुणोहरासि, पत्याविण चल्लिउ जिणु नमेवि, रायगिहगमणि जा मणु धरेवि, ता पभणिउ सो वि जगीसरेण, महुमासमत्तकोइलसरेण, 'पुच्छेज्ज पउत्ति सुकोवियाए, मैहु वयणिण सुलसासावियाए', 'इच्छंति भणेवि नहंगणेण, रायगिहि पत्तु सो तक्खणेण, चिंतेइ 'पेच्छ कह वीयराउ, सुर-नरमज्झम्मि वि पक्खवाउ,
सुलसाएँ करइ केण वि गुणेण ?, तं सव्वु परिक्खमि' इय मणेण, 10 D तव। 20 D जं। 3 A B °णवणसरण। 4 C D मह ।
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