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सुलसाख्यानकम् तो सुलस कहइ तं सव्वु तासु, नियबुद्धिऍ जं किउ अप्पयासु, 'हा हा अकजु तइं कियउं मुद्धि!', सुरु भणइ 'सुनिम्मलकुलविसुद्धि !, होहिंति तुज्झ बत्तीस पुत्त, पर किंतु समाऽऽउय संपउत्त, जइ भिन्न भिन्न भक्खेंत ताउ, तो हुंत नियाऽऽउय तुह सुया उ', सा भणइ 'जीवि जं बद्ध जेव, तं कम्मु तियस ! परिणमइ तेंव, कयकम्मह नवि संसारि को वि, पडिमल्लु होइ सुवियक्खणो वि, तो हरहि पीड मैहु तणुतवंत, जइ सज्झ तुझ सुर ! धम्मवंत !,' सारंगवयणु तो तीऍ अंगि, गउ पीड हरेविणु सन्गि वेगि, सुलस वि गयवेयण, धम्मपरायण, सुहिण गब्भु परिवहइ थिर । अहवा सुरमहियहि, परियणसहियहि, काइँ खूणु तहिं होइ किर ? ॥ ५
[६] नवमासेंहि अह पडिपुन्नएहिं, अट्ठमदिवससमन्निएहिं, सा पसवइ सुहनक्खत्तलग्गि, आसन्नइ पडिचारियहँ वग्गि, समगं चिय वर बत्तीस पुत्त, नीसेससुलक्खणसंपउत्त, नियकतिपयासियगभगेह, नं मिलिय पओयणि तियसनाह, नागु वि वद्धाविउ चेडियाए, रहसेण पियंकरिनामियाए,
तोसेण दिन्नु तो तीऍ दाणु, आइसइ महूसवु अप्पमाणु, अवि य
घुम्मतरुंदमद्दलो, नच्चंतनारिगुंदलो, कीरंतजक्खकद्दमो, दीसन्तवेसविन्भमो, वजंततूरसद्दओ, सव्वंगगेयसद्दओ, धावन्तदासि-दासओ, घिप्पंतसीसवासओ, दिजंतणेयदाणओ, पूइज्जमाणजाणओ, उभिज्जमाणजूयओ, पढंतभट्ट-सूयओ, गिजंतसव्वमंगलो, आविंतबंधुमंडलो, रोलंतसूयमाइओ, माणिजमाणदाइओ, कीरन्तदेवपूयणो, मुच्चंतगुत्तिबंधणो, पूइज्जमाणसंघओ, दिजंतखंडसहघओ, तुप्पंतसाहुपत्तओ, भुजंतचारुभत्तओ, आविंतअक्खवत्तओ, दिजंतपूयपत्तओ, त्ति इय विहवविमदि, जणसम्मदि, वद्धावणउं करेवि ऍहु। देवय पूएविणु, गुरुङ नमेविणु, नामुच्चारणु कुणइ लहु ॥ ६
[७] जिणभद्द-वीरभद्दाइयाई, नामाइँ कुमारहँ ठावियाई, तो पंचधाइपरिपालिया उ, हुय अट्ठवरिस सुहलालिया उ, संवद्धमाण कमसो कुमार, संजाय कलागमपार सार, बत्तीस वि धम्मकलावियड्ड, संपुन्नसुजोव्वण-गुणगणड्ड, बत्तीस वि दारियर्वइरिवार, सोहग्गोहामियसुरकुमार, बत्तीस वि जिणमुणिविहियपूय, नियरूवविणिज्जियमयणरूव(य),
10 D होत। 2 C D मह । 30 D °ण देबि सो तीऍ। 40 D तूररुंदो। 50 D E °सत्थम । 600°खंडसंघओ। 70 D°वैरि।
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