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________________ सटीक मूलशुद्धिप्रकरणम् पडिलाहइ भत्तिऍ समणसंघु, आयंबिलाइतउ तवइ सिग्घु, हरिणेगमेसि सुरु मणि धरेइ, नियमट्ठिय अन्नु वि बहु करेइ, जा ठिय साऽणुट्ठाणि महल्लइ, ता हरिणाऽऽणणआसणु हल्लइ, तं पेक्वेविणु चित्ति चमक्किउ, अवहि पउंजइ चवणाऽऽसंकिउ, तो परियाणिवि सुलसहि चेट्ठिउ, सुरसेणावइ झत्ति समुट्ठिउ, उत्तरवेउविउ सविसेसिं, विउरुव्ववि संचल्लिउ रहसिं, अवि य फुरंतमउडभूसणो, रणंतकिंकिणीसणो, चलंतचारकुंडलो, निबद्धतेयमंडलो, ललन्ततारहारओ, लुलंतवत्थधारओ, सुरम्मतालमालओ, विसट्टमुंडमालओ, रवसुत्तसारओ, परिद्धिवारवारओ, सुगंधफुल्लसेहरो, सुरिंदसिन्नमेहरो, कुरंगतुल्ललोयणो, संपुनरूवजोव्वणो, समुद्दघोसनिस्सणो, विपक्खपक्खभीसणो, सुवेयगइपयारओ, नमन्तकजकारओ, महंतभत्तिचोइओ, समागओ सुरो इओ,त्ति अह तियसु निरंगणु, पयडियपंगणु, ठियउ झत्ति सुलसहि पुरउ । सा नियवि ससंभम, तं गयविब्भम, देइ वरासणु नट्टरउ ।। ४ उवविसवि तेथु तो भणइ देवु, 'किं साविऍ ! हउं पइसरिउ एउ, भण किं पि ज किजइ कजु तुज्झु, तेलोके वि जं किर सज्झु मज्झु', तो भणइ सुलस 'गुरुसत्तिजुत्त !, सुरसेणनाह ! वरनाणवंत !, विन्नायसमत्थपयत्थसत्थु, किं न मुणहि मह मणरुइउ अत्थु ?', तं सुणवि समप्पिय तीय तेण, बत्तीस गुलिय विहसंतएण, 'खाएजसु एक्कक्किय कमेण, तो होसहिं तुहु सुय विणु चिरेण, बत्तीस गुणड्ड पुणो ममं ति, सुमरेज पओयणि कुंददंति !', इय एरिस वयणु पयंपिऊण, सुर हुयउ अदंसण तक्खणेण, पुणु सुलस करेप्पिणु तासु पूय, वरभोगपरायण पुण वि हूय, रिउसमइ समागइ तीऍ चिंत, उप्पन्नी एरिस अइमहंत, 'इट्ठाहँ वि को किर एत्तियाहं, मल-मुत्त मलेसइ नंदणाहं, ता एक्कु कालु भक्खेमि ताओ, गुलियउ जा देवि दिन्नियाओ, बत्तीससुलक्खणु जेण पुत्तु, महु एक होइ वैरसत्तिजुत्तु,' इय चिंतवि गुलियउ तीऍ ताओ, बत्तीस वि समयं भक्खियाओ, तो ताहँ पभाविण तीऍ जाय, बत्तीस गब्भ सुविभत्तकाय, समगं चिय ते वर्ल्डति जाव, हुय वेयण दुद्धर उयरि ताव, जा सक्कइ वेयण नवि सहेवि, ठिय काउसग्गि सुरु मणि धरेवि, सुरु पुण वि समागउ भणइ 'कन्जु, किं साविऍ ! पुणरवि हुयउं अजु, 1 D परिट्टिचार' । 2 C D करेविणु । 3A B गुलियाओ जा देविं । 5A B सुविवद्ध 40 D वरसत्तजुत्तु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001387
Book TitleMulshuddhiprakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size21 MB
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