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सटीक मूलशुद्धिप्रकरणम् नवजुव्वणम्मि वालय ! जइ हं अन्नेण कहवि घिप्पामि । ता तुज्झ कुले निद्दय ! होही वैइणिज्जयं एवं ॥१२८ अहवा किमिणा परितप्पिएण? रक्खेमि ताव नियसीलं । किंचि समासइऊणं वाणियगं जणयसामण्णं ॥ १२९ पिउगेहे वि गयाए मज्झ अउन्नाइ आयरो णत्थि । ता इत्थेव ठिया हं कम्माईयं करेस्सामि' ॥ १३० इय चिंतिऊण तो सा हियए धीरत्तणं विहेऊणं । पविसइ णगरीमझे आलोयंती दस दिसाओ ॥ १३१ तो एगत्थ गिहम्मि भद्दागारं 'नियेइ सा पुरिसं । पाएसु निवडिऊणं विण्णवइ मणोहरसरेणं ॥ १३२ 'ताय! मह होहि सरणं एत्थ अणाहाइ दीणविमणाए । जेणमणाहा णारी पावइ वइणेजयं णियमा ॥१३३
[ग्रन्थाग्रम् १००० ।] चंपापुरीऍ अहयं धूया उ कुलंधरस्स सेट्ठिस्स । सत्थाओ परिभट्ठा वच्चंती चोडविसएसु ॥ १३४ सह भत्तुणा णिएणं एत्तियभूमिं कमेण संपत्ता । इहि तु तुम जणगो होहि महं दुक्खतवियाए' ॥ १३५ तो तीऍ वयणविणयाइएंण परिरंजिओ ईमं भणइ । सो माणिभद्दसेट्ठी 'वच्छे ! तं मज्झ धूय त्ति ॥ १३६ अच्छसु जह नियपिउणो गेहे तह इत्थ मज्झ गेहम्मि । सत्थगवेसणमाई सव्वं पि अहं करेस्सामि' ॥ १३७ इय भणिय निययपुरिसा पट्टविया तेण माणिभद्देण । न य उवलद्धा कत्थ वि इमेहिँ सत्थस्स वत्ता वि ॥१३८ तेहिँ कहियम्मि, सेट्ठी चिंतइ हियएण सुट्ठ संसइओ । 'किं एयाए वयणं सच्चमसच्चं ? परिक्खेमि' ॥ १३९ इय - चिंतिऊण तेणं चंपाए पुरवरीऍ णियपुरिसो । सेट्टिकुलंधरपासे पट्टविओ जाणणाहेउं ॥ १४० । तेण वि गंतूण तहिं पुट्ठो सो 'अत्थि तुज्झ कइ धूया । परिणाविया उ कत्थ व? कहसु जओ माणिभद्देण ॥१४१ पट्ठविओ हं तुमए सह संबंध विहेउकामेण' । सो भणइ 'मज्झ धूयाओं अट्ठ, इह चेव णगरीए ॥ १४२ परिणीयाओ सत्त उ, परिणीया संपयं पुणो भद्द !। अहमिया सा वि गया पइणा सह चउडविसयम्मि ॥१४३ अन्ना उ नत्थि कन्ना, कह संबंध विहेमि सह तेण ? । इय सव्वं गंतूणं कैहियव्वं माणिभद्दस्स' ॥ १४४ तेण वि आगंतूणं सव्वं सेट्ठिस्स अक्खियं सो वि । जाणित्ता परमत्थं विहेइ अहिगोरवं तीए ॥ १४५ सा तस्स गिहे बाला अच्छइ धूय व्व सुट्ठ परितुट्ठा । विणयाईहिँ य तीय वि तं गेहं रंजियं सव्वं ॥१४६ अह सो वि माणिभद्दो पालइ जिणदेसियं वरं धम्मं । कारावियं च तेणं उत्तुंगं जिणवराययणं ॥ १४७ तो तम्मि जिणहरम्मि उवलेवण-मंडणाइवावारं । सा कुणइ भत्तिजुत्ता पइदियहं धम्मसद्धाए ॥ १४८ सौहण साहुणीण य संसग्गीए य साविया जाया । सुलस व्व अणण्णसमा, किं बहुणा इत्थ भणिएणं? ॥ जं जं वियरइ सेट्ठी दव्वं भत्तल्लगाइकज्जेण । तं तं रक्खेवि इमा कुणइ जिणिंदालए रच्छं ॥ १५० सेट्ठी वि दुगुण-तिगुणं जा निच्चं तीऍ रंजिओ देइ । ता छत्तत्तयरयणं कारवियं तीइ अइरम्मं ॥ १५१
अवि यकणगविणिम्मियमालोवमालियं विविहरयणचिंचइयं । वरमुत्ताहलझुलंतविविहपालंबकयसोहं ॥ १५२ भुयइंदमुक्कनिम्मोयसरिसपटूंसुगेहिँ उत्थइयं । विविहमणिरयणचित्तियचामीयरघडियवरदंडं ॥ १५३ एवंविहं विहेउं विविहविभूईएँ जिणहरे देइ । अन्नं पि कुणइ सव्वं तव-दाणाई जहाजोगं ॥ १५४ पूएइ साहु-साहुणि-साहम्मियवग्गमेव अणवरयं । सज्झाय-ऽज्झयणाइसु अहिंगं अब्भुजमं कुणइ ॥ १५५
अह अन्नया कयाई चिंताभरसागरम्मि निब्बुहूं । पेच्छित्तु तयं सेटिं पुच्छइ परमेण विणएणं ॥ १५६ _ 'किं ताय! अज दीसह अहियं चिंतापिसायपरिहत्था ? । सो भणइ 'पुत्ति ! णिसुणसु चिंताए कारणं मज्झ ।
10 D वयणि। 20 D अवलोयंती। 3 C D निएवि। 4 C D °सयम्मि। 5 C D एहिं परि । 6A B इमो। 70D भणिउं नियपु°। 8 1 एतचिह्वान्तर्वर्ती पाठ: A-B प्रत्यो स्ति। 90D अट्टमिया सं। 100D परिणीया सा वि गया सह पइणा चोडवि। 110 D कहेहि तं मा। 12 A B अह गो। 13 CD याइएहिती। 14 A B साहू-साहणीण य। 15A B वि। 16 A B रत्थं । 17 0D रिघत्था ।
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