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________________ २२ विविध प्राकृत भाषाएँ (१६) व्य का वैकल्पिक ब्य पाया जाता है : ब्यासत्त (ब्यासक्त), ब्यत्त (व्यक्त), ब्यापाद (व्यापाद), ब्यञ्जन (व्यञ्जन), ब्यूह (व्यूह) (१७) संयुक्त व्यंजन के पहले दीर्घ मात्रा अपवाद के रूप में यथावत् मिलती हैं : स्वाक्खात (स्वाख्यात), बाल्य, दात्त (दात्र). ब्राह्मण (१८) संयुक्त व्यंजनों का समीकरण प्रायः प्राकृत की तरह ही होता है। परंतु कुछ अपवाद् इस प्रकार मिलते हैं : (अ) स्पर्श व्यंजन के साथ अन्तस्थ : सक्य (शाक्य), अग्यागार (अग्न्यागार) आरोग्य, निग्रोध (न्यग्रोध) अमुत्र, तत्र, चित्र, भद्र, करित्वा, सुत्वा, चयित्वा, उक्लाप (उत्क्लाप) (ब) अन्तस्थ के साथ अन्तस्थ : माल्य, कल्याण (स) अनुनासिक के साथ अन्तस्थ : अन्वय, अन्वेति, कम्य (काम्य) (द) कभी य् के द्वित्वकरण के रूप में : देय्य (देय), गेय्य (गेय), सेय्य (श्रेयस्) (१९) संयुक्त व्यंजन संबंधी अन्य परिवर्तन इस प्रकार हैं : (अ) ज्ञ, न्य, ण्य ञ : पञ्जा (प्रज्ञा), अज्ञा (आज्ञा), कञा (कन्या), अञ्ज (अन्य), अरज्ञ (अरण्य), पुञ्ज (पुण्य) (ब) र्य-य्य : अय्य (आर्य), निय्याति (निर्याति) (स) श्न-व्ह : पञ्ह (प्रश्न) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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