________________
२८
प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
निय, निज, खायित, ('य' श्रुति युक्त), खादित, लहु, लघु, रुहिर, रुधिर ।
(१०) 'ड' और 'ढ' के स्थान पर 'ळ' और 'ळ्ह' भी पाये जाते हैं : दाळिम ( दाडिम), पीळा ( पीडा ), गळह ( गढ ), आसाळह ( आषाढ)
(११) ट् का कभी कभी ळ् हो जाता है :
खेळ (खेट), लाळ (लाट)
(१२) ल का कभी कभी ळ हो जाता है :
पळाश (पलाश), चोळ (चोल), माळ (माल)
(१३) 'प्रति' का 'पटि' हो जाता है :
पटिविरत ( प्रतिविरत ), पटिजानाति ( प्रतिजानाति ), पटिग्गहण ( प्रतिग्रहण )
(१४) अपवाद के रूप में मध्यवर्ती व्यंजनों के परिवर्तन इस प्रकार मिलते
हैं :
(ब)
व श्रुतिः सुव (शुक), आवुध (आयुध), कसाव (कसाय) त थ द ध : रुद (रुत), गधित (ग्रथित)
द, ध=त, थ : मुतिङ्ग (मृदङ्ग), पिथीयति (पिधीयते)
क्वचित् लोप : आवेणिय, कोसिय (क); निय(ज); सायति (स्वादते), खायित ( खादित) (द) ।
(१५) अपवाद के रूप में प्रारंभ में संयुक्त व्यंजन अन्तस्थ के साथ इस प्रकार मिलते हैं :
(अ) त्यासु, व्यञ्जन, व्याकरण, व्याकुल, व्यापार, व्यापाद ब्रह्म, ब्राह्मण, ब्रूति
(स) क्वचि (क्वचित्), क्वं, द्वार, द्विधा, द्वे, त्वं, स्वाक्खात (स्वाख्यात),
स्वे (श्वस्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org