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________________ विविध प्राकृत भाषाएँ २७ (ङ) पालि महाराष्ट्री प्राकृत में होने वाले ध्वनि-सम्बंधी परिवर्तनों को आधार बनाकर पालि भाषा की विशेषताएँ इस प्रकार दर्शायी जा सकती (१) स्वर-संबंधी परिवर्तन प्रायः प्राकृत के समान ही होते हैं। (२) पालि में अन्य व्यंजनों के अतिरिक्त 'ळ' और 'ळ्ह' भी पाये जाते हैं। अनुनासिक व्यंजन इ और ञ् का सजातीय अन्य व्यंजन के साथ संयुक्त रूप में और दो ञ् का एक साथ प्रयोग होता है : किङ्कर, सङ्घ, अङ्ग, सङ्घ, पञ्च, मञ्जरी, वझा, (वन्ध्या), पा (प्रज्ञा) (४) ञ् का स्वर के साथ भी प्रयोग होता है : जाति (ज्ञाति). (५) 'न्' का प्रायः 'ण' में परिवर्तन नहीं होता है : नगर, वदन, नन्दन, मन, नाग (६) प्रारंभिक 'य' का प्राय: 'ज' नहीं होता है : योग, यक्ख (यक्ष), येन, यदा (७) स् का (प्राकृत की तरह) ह् में परिवर्तन नहीं होता हैं । (८) र का ल अनेक बार मिलता है : लोम (रोम), तलुण (तरुण), लुक्ख (रुक्ष) मध्यवर्ती अल्प-प्राण व्यंजनों का लोप, 'य' श्रुति और महाप्राण व्यंजनों का 'ह' प्रायः नहीं होता है । यही मुख्य प्रवृत्ति पालि को प्राकृत से अलग करती है । कुछ अपवाद इस प्रकार हैं : (९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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