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________________ २६ (vi) ईअ ( इत्) : तृतीय पुरुष एक वचन : वंदीअ, हसीअ, करीअ, गेण्हीअ, हुवीअ (vii) इंसु, अंसु (इषु: ) : तृतीय पुरुष बहु वचन : गच्छसु, पुच्छिसु, आहंसु (२३) कर्मणि-भूत-कृदन्त ड : ऋकारान्त धातुओं में क. भू.कृ. त का ड हो जाता है : कड (कृत), मड (मृत), संवुड (संवृत), आहड (आहत) (२४) हेत्वर्थक कृदन्त : (i) इत्तए, एत्तए, तए ( - तवे, तवै, * त्वायै) : गमित्तए, पुच्छित्तए, करेत्तए, होत्तए प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण (ii) इत्तु, ट्टु : सुणित्तु, जाणित्तु, कट्टु (२५) सम्बन्धक भूत कृदन्त के लिए अनेक प्राचीन प्रत्यय मिलते हैं : (i) इत्ता, एत्ता, त्ता (त्वा) : करिता, आगमेत्ता होत्ता, गंता ( गत्वा) (ii) च्चा (त्या) : होच्चा (भूत्वा), पेच्चा (प्रेत्य), किच्चा ( कृत्वा), सोच्चा (श्रुत्वा) (iii) इत्ताणं, एत्ताणं (त्वा+न) : पासित्ताणं, पासेत्ताणं, लहित्ताणं, लहेत्ताणं (iv) च्चाण, च्चाणं (त्वा+न) : नच्चाण, नच्चाणं (ज्ञात्वा ) (v) इत्तु, ट्टु (त्व) : वंदित्तु, जाणित्तु, कट्टु (कृत्वा) (vi) इय, इया, ए (य, या) : वियाणिय, दुरुहिय, पासिया, परिजाणिया अणुपालिया, आयाए (आदाय ), परिन्नाए (परिज्ञाय ) (vii) याण, याणं (* या +न) : लहियाण ( लब्ध्वा ), आरुसियाणं (आरुष्य) नोट इस भाषा के संबंध में जो नयी विशेषताएँ प्रकाश में आयी हैं उनके लिए अन्त में जोड़ा गया परिशिष्ट देखिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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