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________________ विविध प्राकृत भाषाएँ २१ (ग) मागधी शौरसेनी प्राकृत को आधार बनाकर मागधी प्राकृत की अन्य विशेषताएँ इस प्रकार दर्शायी जा सकती हैं । (१) 'य' का 'ज्' में परिवर्तन नहीं होता है । (२) ज् का य् में परिवर्तन होता है : यणवद (जनपद) (३) र का ल हो जाता है : णल (नर) लायिद (राजित) (४) स् और ए का प्रायः श् में परिवर्तन होता है: शालश (सारस), घोश (घोष) (५) छ्, ‘, र्य=य्य : अय्य (अद्य), दुय्यण (दुर्जन), अय्य (आर्य) ज्, अ, ण्य, न्य-ज्ञ् : पञ्जा (प्रज्ञा), अञ्जलि (अञ्जलि), पुञ्ज (पुण्य), अञ्ज (अन्य) (७) क्ष् = श्क् : लश्कश (राक्षस), यश्क (यक्ष), पश्क (पक्ष) (८) च्छ्-श्च : गश्च (गच्छ)=(९) ट्ट-स्ट् : पस्ट (पट्ट) (१०) =स्त् : शस्त (सार्थ) (११) स्थ्-स्त् : उवस्तिद (उपस्थित) (१२) क-स्क् : शुस्क (शुष्क) (१३) ष्ख् स्ख् : धनुस्खंड (धनुष्खंड) (१४) -स्ट : कस्ट (कष्ट) (१५) कुछ संयुक्त व्यंजनों में ऊष्म व्यंजन उपलब्ध हैं : पश्चिम, निश्चल, पश्चादो, पुष्टि, चिष्ठ, हस्त, बुहस्पदि, विस्मय (१६) 'अ' कारान्त पुल्लिंग प्रथमा एक वचन का विभक्ति प्रत्यय ___'ए': रामे (रामः) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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