________________
ध्वनि-परिवर्तन
पडिय (पतित), पडाया (पताका), सिढिल (शिथिल) (ब) शब्द में ऋकार और रकार आने पर दन्त्य व्यंजन कभी कभी
मूर्धन्य बनकर फिर घोष बन जाते है :
मडय (मृतक), पडिहार (प्रतिहार), पढम (प्रथम). (७) कुछ अन्य परिवर्तन :
कभि कभी निम्न परिवर्तन पाये जाते हैं : (अ) द्वित्वकरण :
एक्क (एक), तेल्ल (तैल), निहित्त (निहित), उच्चिय (उचित),
पेम्म (प्रेम), बहुप्फल (बहुफल), परव्वस (परवश). (ब) वर्ण-लोप :
उम्बर (उदुम्बर), सीया (शिबिका), राउल (राजकुल), अवरत्त (अपररात्र), अड (अवट), भाण (भाजन), आअ (आगत),
हिअ (हृदय). (स) वर्ण-व्यत्यय :
वाणारसी (वाराणसी), दीहर (दीरह- दीर्घ), पेरन्त (पयरन्त
पर्यन्त), अच्छेर (अच्छयर अच्छरय आश्चर्य), मरहट्ठ (महाराष्ट्र). (द) कभी कभी ड्, द्, और र् का ल् हो जाता है : ङ्ल् : तलाय (तडाग), गरुल (गरुड), वीला (व्रीडा),
नियल (निगड), वलयामुह (वडवामुख), कीला
(क्रीडा). -ल् : पलित्त (प्रदीप्त), दोहल (दोहद), कलंब (कदम्ब),
दुवालस (द्वादश). -ल् : चलण (चरण), सुकुमाल (सुकुमार), हलिद्दा
(हरिद्रा), मुहल (मुखर), फलिहा (परिखा).
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org