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________________ प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण (शाखा), मऊह (मयूख), मुहर (मुखर) घ : जहण (जघन), ओह (ओघ), मेह (मेघ), लहु (लघु), दीह (दीघ-दीर्घ), रहुवीर (रघुवीर) थ : रह (रथ), कहा (कथा), णाह (नाथ), गाहा (गाथा) ध : अहर (अधर), विविह (विविध), महु (मधु), साहु (साधु), पहाण (प्रधान) फ : मुत्ताहल (मुक्ताफल), सेहालिआ (शेफालिका) भ : णह (नभ), सहा (सभा), आहरण (आभरण), सुरहि (सुरभि), पहाय (प्रभात) (५) घोषीकरण : . (अ) अघोष 'ट्' और 'ठ्' प्रायः घोष 'ड्' और 'ढ्' में बदल जाते हैं : ट्-ड् : तड (तट), कूड (कूट), चेडी (चेटी), कुडिल (कुटिल), जडिअ (जटित), बडुअ (बटुक), छडा (छटा), कडि (कटि) द : पढ ( पठ), कुढार (कुठार), मढ (मठ), कढिण (कठिन), सढ (शठ), धरवीढ (धरापीठ), कढोर (कठोर) (ब) कभी कभी 'क्' घोष व्यंजन ग् में बदल जाता हैं : एग (एक), नायग (नायक), आगार (आकार), लोग (लोक), मगर (मकर), तिग (त्रिक) (६) मूर्धन्यीकरण और घोषीकरण : (अ) दन्त्य व्यंजन कभी कभी मूर्धन्य बनकर फिर घोष हो जाते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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