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(३)
(४)
प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
(क) अपवाद के रूप में निम्न परिवर्तन भी पाये जाते हैं :
( ५ )
क-ह : चिहुर (चिकुर), फलिह (स्फटिक) खक : संकला (श्रृङ्खला)
( स ) अंतिम व्यंजन
शब्द के अन्त में व्यंजन नहीं आता है । अंतिम व्यंजन का या तो लोप हो जाता है अथवा उसमें कोई स्वर का आगम हो जाता है या वह अनुस्वार में बदल जाता है ।
(१) लोप
(२)
गल : छाल (छाग)
ण=ल : वेलु (वेणु)
ट-ल : फलिह (स्फटिक) [ट्=ड्=ल्]
तह : भरह (भरत)
फ-भ : सेभालिआ (शेफालिका)
बव : अलावु ( अलाबु ), सवर (शबर) व-म : नीमी (नीवी)
: जाव ( यावत् ), मण (मनस् ), जग (जगत् ) आगम : वणिअ ( वणिज - वणिज् ), दिसा ( दिशा-दिश् ), सरिया ( सरिता- सरित् )
अंतिम अनुनासिक व्यंजन का अनुस्वार हो जाता है : कहं ( कथम् ), रामं (रामम् ), किं (किम् ), एवं (एवम्), भवं ( भवान् ), भगवं (भगवान्)
कभी कभी अंतिम व्यंजन अनुस्वार में बदल जाता है :
जं (यत्), सम्मं (सम्यक् ), मणं ( मनाक् ), सक्खं (साक्षात्), मरणं (मरणात्)
अपवाद : अर्धमागधी में अन्त में त् युक्त अकस्मात् का प्रयोग मिलता है ।
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