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________________ १० (३) (४) प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण (क) अपवाद के रूप में निम्न परिवर्तन भी पाये जाते हैं : ( ५ ) क-ह : चिहुर (चिकुर), फलिह (स्फटिक) खक : संकला (श्रृङ्खला) ( स ) अंतिम व्यंजन शब्द के अन्त में व्यंजन नहीं आता है । अंतिम व्यंजन का या तो लोप हो जाता है अथवा उसमें कोई स्वर का आगम हो जाता है या वह अनुस्वार में बदल जाता है । (१) लोप (२) गल : छाल (छाग) ण=ल : वेलु (वेणु) ट-ल : फलिह (स्फटिक) [ट्=ड्=ल्] तह : भरह (भरत) फ-भ : सेभालिआ (शेफालिका) बव : अलावु ( अलाबु ), सवर (शबर) व-म : नीमी (नीवी) : जाव ( यावत् ), मण (मनस् ), जग (जगत् ) आगम : वणिअ ( वणिज - वणिज् ), दिसा ( दिशा-दिश् ), सरिया ( सरिता- सरित् ) अंतिम अनुनासिक व्यंजन का अनुस्वार हो जाता है : कहं ( कथम् ), रामं (रामम् ), किं (किम् ), एवं (एवम्), भवं ( भवान् ), भगवं (भगवान्) कभी कभी अंतिम व्यंजन अनुस्वार में बदल जाता है : जं (यत्), सम्मं (सम्यक् ), मणं ( मनाक् ), सक्खं (साक्षात्), मरणं (मरणात्) अपवाद : अर्धमागधी में अन्त में त् युक्त अकस्मात् का प्रयोग मिलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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