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(घ)
प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण (ग) अपभ्रंश में प्राकृत के 'उं, इउं' के सिवाय अन्य हेत्वर्थ कृदन्त इस
प्रकार मिलते हैं - (i) अण-सहण, करण, कहण (ii) अणहि-भुंजणहिं, मुंचणहिं (iii) अणु-धरणु (iv) एव्वइं-करेव्वई (v) एवं-करेवं, चएवं अपभ्रंश में सम्बन्धक भूत कृदन्त हेत्वर्थ के लिए भी प्रयुक्त होता हैअवि-करवि, जिणवि
इउ-हरिउ इवि-करिवि, धरिवि
पि-गंपि एवि-करेवि
पिणु-गंपिणु एविणु-करेविणु
प्पि-करेप्पि, जेप्पि इ-करि, मारि, मुणि प्पिणु-करेप्पिणु, गमेप्पिणु
(iv) संबंधक भूत कृदन्त संस्कृत भाषा में 'त्वा' और 'य' के उपयोग का जो भेद था वह प्राकृतों में मिट गया। दोनों प्रत्यय मूल धातु और उपसर्ग युक्त धातु का भेद-भाव किये बिना लगाये जाने लगे।
(अ) प्राकृत में प्रचलित प्रत्यय 'ऊण, ऊणं, इऊण, इऊणं' (तूण) हैं, पालि में 'त्वा', 'त्वान' हैं और अपभ्रंश में ‘एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु' हैं । अन्य प्रत्ययों के उदाहरण भी नीचे दिये गये हैं, अपभ्रंश में तो अनेक प्रत्यय मिलते हैं। प्राकृत पालि
अपभ्रंश दाऊण (णं) दत्वा, ददित्वा जिणेप्पि, जिणेप्पिणु काऊण (णं) कत्वा, कत्वान करेवि, करेविणु नाऊण (णं) अत्वा, ञत्वान गमेप्पि, गमेप्पिणु नेऊण (णं) नीत्वा, नेत्वान हरेवि, हरेविणु सोऊण (णं) सुत्वा, सुत्वान सुणेवि, सुणेबिणु होऊण (णं) भुत्वा, भुत्वान तोडेप्पि, तोडेप्पिणु वंदिऊण (णं) वन्दित्वा
पेक्खेवि, पेक्खेविणु हसिऊण (णं) हसित्वा
हसेवि, हसेविणु
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