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कृदन्त एवं प्रयोग
(iii) हेत्वर्थ कृदन्त (अ) हेत्वर्थ के लिए प्राकृत में 'उं, इउं' पालि में 'तुं; इतुं' और अपभ्रंश में 'हुं, अणहं' प्रत्यय धातु में जोड़े जाते हैं । कुछ अन्य रूपों के उदाहरण भी मिलते हैं । प्राकृत पालि प्राकृत पालि प्राकृत अपभ्रंश प्राकृत पालि दाउं दातुं हसिउं हसितुं गाइडं पुच्छहुँ गंतुं गन्तुं पाउं पातुं सुणिउं सुणितुं खाइडं जुज्झहुं वोत्तुं वत्तुं काउं कातुं पुच्छिउं पुच्छितुं उहिउं सिक्खहुँ दटुं दटुं णाउं जातुं मरिउं मरितुं हसेउं करणहं णेउं नेतुं
वारेउं सेवणहं सोउं सोतुं
मारेउं धवलणहं (ब) प्राचीन प्राकृत भाषा (अर्धमागधी) में 'त्तए और इत्तए' का प्रयोग
मिलता हैं.- तरित्तए, पुच्छित्तए, करित्तए, करेत्तए, भोत्तए, होत्तए (स) प्राचीन पालि में 'तवे, तुये और ताये' का प्रयोग भी मिलता हैं :
दातवे, नेतवे, सोतवे; कातुये, मरितुये, गणेतुये; पुच्छिताये, खादिताये प्राकृत और पालि में 'तु' प्रत्यय के बाद 'काम' वाले कुछ प्रयोग भी मिलते हैं - प्राकृत-जीविउकाम, गंतुकाम, दद्दुकाम
पालि-जीवितुकाम, गन्तुकाम, दट्ठकाम (क) प्राकृत और पालि में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग हेत्वर्थ के लिए होता
है-करणाय, सवनाय, दस्सनाय (ख) प्राकृत में सम्बन्धक भूत कृदन्त 'त्ता तु (इत्तु, टु)' इत्यादि का
प्रयोग हेत्वर्थ के लिए होता है(देखिये सम्बन्धक भूत कृदन्त प्रकरण)
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