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________________ ८७ कृदन्त एवं प्रयोग पडिऊण (णं) पतित्वा करेप्पि, करेप्पिणु भणिऊण (णं) भणित्वा भणेप्पि, भणेप्पिणु भरेऊण (णं) भरित्वा भरेवि, भरेविणु बंधेऊण (णं) बन्धित्वा बंधेप्पि, बंधेप्पिणु (ब) कुछ 'तून' वाले रूप : प्राकृत-कातूण, गंतूण, मोत्तूण, भेत्तूण, भोत्तूण, लभ्रूण, दद्रुण, पालि-कातून, गन्तून, मन्तून, जनितून, आपुच्छितून (स) प्राकृत एवं पालि के 'य' प्रत्यय वाले रूप : प्राकृत-गहाय, पासिय, निम्माय, जहाय, सुणिअ, थुणिअ, पेक्खिअ, सुमरिअ (प्रायः शौरसेनी और मागधी में) पालि-गहाय, सुणिय, आदाय, भविय, छिन्दिय, सुमरिय, अभिज्ञाय (कभी कभी 'य्य' वाले रूप-अभिभुय्य पप्पुय्य) (द) संस्कृत के रूप ध्वनि परिवर्तन के साथ: प्राकृत-समेच्च, आहच्च, (समेत्य, आहत्य) पालि-पेच्च, समेच्च, आहच्च, पटिगच्च, पटिच्च (प्रेत्य, समेत्य, आहत्य, प्रतिगत्य, प्रतीत्य) प्राकृत-पप्प, परिगिज्झ, उवलब्भ, निक्खम्म, पक्खिप्प, आरब्भ (प्राप्य, परिगृह्य, उपलभ्य, निष्क्रम्य, प्रक्षिप्य, आरभ्य) पालि-आगम्म, आरब्भ, परिचज्ज, लद्धा (आगम्य, आरभ्य, परित्यज्य, लब्ध्वा) (क) प्राचीन प्राकृत में 'त्ता, (ता), ताणं, (ताण), तु, (इत्तु, दृ) याण, (याणं) एवं आए' युक्त रूप भी मिलते हैं (प्रायः अर्धमागधी में) त्ता-वंदित्ता, आगमेत्ता, भेत्ता, छेत्ता, करित्ता, करेत्ता, गंता, वंता, ताणं-भवित्ताणं, करेत्ताणं, आपुच्छित्ताणं, चिट्ठित्ताणं तु-वंदित्तु, जाणित्तु आहट्ट (आहृत्य) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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